________________ 350] [उत्तराध्ययनसून सिंह कहा है तथा कर्मविदारण करने में अतीव पराक्रमी (शूरवीर) होने से मुनि को अनगार-सिंह कहा है।' उपसंहार 60. इयरो वि गुणसमिद्धो तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरप्रो य / विहग इव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहो / -त्ति बेमि // [60] और वह मुनि भी (मुनि के 27) गुणों से समृद्ध, तीन गुप्तियों से गुप्त, तीन दण्डों से विरत पक्षी की तरह प्रतिबन्धमुक्त तथा मोहरहित हो कर भूमण्डल पर विचरण करने लगे। __ --ऐसा मैं कहता हूँ। // महानिर्ग्रन्थीय : वीसवाँ अध्ययन समाप्त / 1. बहद्वत्ति, पत्र 480-481 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org