________________ बीसवां अध्ययन : महानिनन्यीय] 23. ते मे तिगिच्छं कुन्वन्ति चाउप्पायं जहाहियं / न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्श अणाया / / ... [23] जैसे भी मेरा हित हो, वैसे उन्होंने मेरी चतुष्पाद (वैद्य, रोगी, औषध और परिचारक रूप चतुष्प्रकार) चिकित्सा की, किन्तु वे मुझे दुःख (पीड़ा) से मुक्त न कर सके; यह मेरी अनाथता है। 24. पिया मे सव्वसारं पि दिज्जाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्झ अणाहया // [24] मेरे पिता ने मेरे निमित्त (उन चिकित्सकों को उपहारस्वरूप) (घर की) सर्वसार (-समस्त धन प्रादि सारभूत) वस्तुएँ दीं, किन्तु वे मुझे दुःख से मुक्त न कर सके, यह मेरी अनाथता है। 25. माया य मे महाराय ! पुत्तसोगदुहट्टिया। न य दुक्खा विमोएइ एसा मज्मा प्रणाहया // [25] हे महाराज ! मेरी माता पुत्रशोक के दुःख से पीड़ित रहती थी, किन्तु वह भी मुझे दुःख से मुक्त न कर सकी, यह मेरी अनाथता है। 26. भायरो मे महाराय ! सगा जेट्ट-कणिद्वगा। ___ न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्म अणाहया / / [26] मेरे बड़े और छोटे सभी सहोदर भाई भी दुःख से मुक्त नहीं कर सके, यह मेरी अनाथता है। 27. भइणीओ मे महाराय ! सगा जेट्ठ-कणि?गा। न य दुक्खा विमोयन्ति एसा मज्श अणाहया // [27] महाराज ! मेरी छोटी और बड़ी सगी भगिनियां (बहनें) भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकीं यह मेरी अनाथता है। 28. भारिया मे महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया / अंसुपुण्णेहि नयणेहि उरं मे परिसिंचई / [28] महाराज! मेरी पत्नी, जो मुझ में अनुरक्ता और अनुव्रता (पतिव्रता) थी, अश्रुपूर्ण नेत्रों से मेरे उरःस्थल (छाती) को सींचती रहती थी। 29. अन्नं पाणं च पहाणं च गन्ध-मल्ल-विलेवणं / मए नायमणायं वा सा बाला नोवभुजई // [26] वह बाला (नवयौवना पत्नी) मेरे जानते या अनजानते (प्रत्यक्ष या परोक्ष में) कदापि अन्न, पान, स्नान, गन्ध, माल्य और विलेपन का उपभोग नहीं करती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org