SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 320] [उत्तराध्ययनसूत्र 69. तत्ताई तम्बलोहाई तउयाई सोसयाणि य। पाइओ कलकलन्ताई आरसन्तो सुभेरवं // [66] भयंकर आक्रन्दन करते हुए मुझे कलकलाता-उकलता गर्म तांबा लोहा, रांगा और सीसा पिलाया गया। 70. तुहं पियाई मंसाई खण्डाई सोल्लगाणि य / खाविओ मि समसाई अग्गिवण्णाई गसो॥ [70] तुझे 'टुकड़े-टुकड़े किया हुआ और शूल में पिरो कर पकाया हुमा मांस प्रिय था,—(यह याद दिला कर) मुझे अपना ही शिरीरस्थ) मांस (काट कर और उसे तपा कर) अग्नि जैसा लाल रंग का (बना कर) बार-बार खिलाया गया। 71. तुहं पिया सुरा सीहू मेरओ य महणि य / पाइओ मि जलन्तोश्रो वसाओ रहिराणि य / / [71] तुझे सुरा, सीधु, मैरेय और मधु (पूर्वभव में) बहुत प्रिय थी,' (यह स्मरण करा कर) मुझे जलती (गर्म की) हुई, (मेरी अपनी ही) चर्बी और रक्त पिलाया गया। 72. निच्चं भीएण तत्थेण दुहिएण बहिएण य / परमा दुहसंबद्धा वेयणा वेइया मए // [72] मैंने (पूर्वजन्मों में नरक में इस प्रकार) नित्य ही भयभीत, संत्रस्त, दुःखित और व्यथित रहते हुए दुःख से सम्बद्ध (-परिपूर्ण) उत्कट वेदनाओं का अनुभव किया है / 73. तिव्व-चण्ड-प्पगाढामा घोराओ अइदुस्सहा / ___ महन्मयाओ भ'माओ नरएसु वेइया मए॥ [73] मैंने नरकों में तीव्र, प्रचण्ड, प्रगाढ़, घोर, अतिदुःसह, महाभयंकर और भीषण वेदनाओं का अनुभव किया है। 74. जारिसा माणुसे लोए ताया ! दोसन्ति वेयणा / एतो अणन्तगुणिया नरएसु दुक्खवेयणा // [74[ हे पिता ! मनुष्यलोक में जैसी (शीतोष्णादि) वेदनाएँ देखी जाती हैं, उनसे अनन्तगुणी अधिक दुःखमयी वेदनाएँ नरकों में होती हैं / 75. सध्वभवेसु अस्साया वेयणा वेइया मए / निमेसन्तरमित्तं पि जं साया नस्थि वेयणा // [75] मैंने सभी जन्मों में असाता-(दुःख) रूप वेदना का अनुभव किया है / वहाँ निमेष मात्र के अन्तर जितनी भी सुखरूप वेदना नहीं है / विवेचन-मगापुत्र के मुख से नरकों में अनुभूत उत्कृष्ट वेदनाओं का वर्णन-माता-पिता ने मृगापुत्र के समक्ष श्रमणधर्मपालन में होने वाली कठिनाइयों और कष्टकथाओं का वर्णन किया तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy