________________ उन्नीसवाँ अध्ययन : मृगापुत्रीय] [319 62. मुग्गरेहि मुसंढोहिं सूलेहि मुसलेहि य / गयासं भग्गगत्तेहिं पत्तं दुक्खं अणन्तसो॥ [62] मेरे शरीर को चूर-चूर करने वाले मुद्गरों से, मुसंढियों से, त्रिशूलों (शूलों) से और मूसलों से (रक्षा के लिए) निराश हो कर मैंने अनन्त बार दुःख पाया है। 63. खुरेहि तिक्खधारेहि छरियाहिं कप्पणीहि य। कप्पिओ फालिओ छिन्नो उक्कत्तो य अणेगसो // [63] तीखी धार वाले छुरों (उस्तरों) से, छुरियों से और कैंचियों से मैं अनेक बार काटा गया हूँ, फाड़ा हूँ, छेदा गया हूँ और मेरी चमड़ी उधेड़ो गई है। 64. पासेहि कडजालेहि मिओ वा अवसो अहं। ___ वाहिओ बद्धरुद्धो अ बहुसो चेव विवाइयो / / [64] मृग की भांति विवश बना हुआ पाशों और कूट (कपटयुक्त) जालों से मैं अनेक बार छलपूर्वक पकड़ा गया, (बंधनों से) बांधा गया, रोका (बंद कर दिया गया और विनष्ट किया गया हूँ। 65. गलेहि मगरजालेहि मच्छो वा अवसो अहं / उल्लिओ फालिओ गहिओ मारिओ य अणन्तसो / / [65] गलों (-मछली को फंसाने के कांटों) से, मगरों को पकड़ने के जालों से मत्स्य को तरह विवश बना हुअा मैं अनन्त बार बींधा (या खींचा) गया, फाड़ा गया, पकड़ा गया और मारा गया। 66. वोदसएहि जालेहि लेप्पाहि सउणो विव / गहिरो लग्गो बद्धो य मारिओ य अणन्तसो / [66] पक्षी की भांति बाज पक्षियों, जालों तथा वज्रलेपों के द्वारा मैं अनन्त बार पकड़ा गया, चिपकाया गया, बांधा गया और मारा गया। 67. कुहाड–फरसुमाईहिं बड्ढईहिं दुमो विव / कुट्टिओ फालिओ छिन्नो तच्छिओ य अणन्तसो॥ [67] सुथारों, के द्वारा वृक्ष की तरह कुल्हाड़ी और फरसा आदि से मैं अनन्त बार कुटा गया, फाड़ा गया, काटा गया और छोला गया हूँ। 68. चवेडमुट्ठिमाईहि कुमारेहि अयं पिव / ताडिनो कुट्टिओ भिन्नो चुणियो य अणन्तसो॥ [68] लुहारों के द्वारा लोहे की भांति (परमाधर्मी असुरकुमारों द्वारा) थप्पड़ और मुक्का आदि से अनन्त बार पीटा गया, कूटा गया, खण्ड-खण्ड किया गया और चूर-चूर किया गया / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org