________________ 318] [उत्तराध्ययनसूत्र 55. कूवन्तो कोलसुणएहिं सामेहि सबले हि य / पाडियो फालिओ छिन्नो विप्फुरन्तो अणेगसो॥ [55] मैं (इधर-उधर) भागता और चिल्लाता हुआ श्याम (काले) और सबल (चितकबरे) सूअरों और कुत्तों से (परमाधर्मी असुरों द्वारा)अनेक बार गिराया गया, फाड़ा गया और छेदा गया हूँ। 56. असीहि अयसिवण्णाहिं भल्लीहिं पट्टिसेहि य। छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य ओइण्णो पावकम्मुणा // [56] पापकर्मों के कारण मैं नरक में जन्मा और (वहाँ) अलसी के फूलों के सदश नीले रंग की तलवारों से, भालों से और लोहे के दण्डों (पट्टिश नामक शस्त्रों) से छेदा गया, भेदा गया और टुकड़े-टुकड़े किया गया। 57. अवसो लोहरहे जुत्तो जलन्ते समिलाजुए। चोइओ तोत्तजुत्तेहि रोज्झो वा जह पाडियो / [57] समिला (जुए के छेदों में लगाने की कोल) से युक्त जुए वाले जलते लोहमय रथ में विवश करके मैं जोता गया हूँ, चाबुक और रास (नाक में बांधी गई रस्सी) से हांका गया हूँ, फिर रोझ की तरह (लट्ठी आदि से पीट कर जमीन पर) गिराया गया हूँ। 58. हुयासणे जलन्तम्मि चियासु महिसो विव / दड्ढो पक्को य अवसो पावकम्मेहि पाविओ // [58] पापकर्मो से प्रावृत्त मैं परवश हो कर जलती हुई अग्नि की चिताओं में भैंसे की तरह जलाया और पकाया गया हूँ। 59. बला संडासतुण्डेहिं लोहतुण्डेहि पर्खािह / विलुत्तो विलवन्तोऽहं ढंक-गिद्ध हिऽणन्तसो // [56] लोहे-सी कठोर और संडासी जैसी चोंच वाले ढंक एवं गिद्ध पक्षियों द्वारा मैं रोताबिलखता बलात् अनन्तबार नोचा गया हूँ / 60. तण्हाकिलन्तो धावन्तो पत्तो वेयरणि नदि / ___ जलं पाहि ति चिन्तन्तो खुरधाराहि विवाइओ॥ [60] पिपासा से व्याकुल हो कर, दौड़ता हुआ मैं वैतरणी नदी पर पहुंचा और 'जल पीऊंगा. यह विचार कर ही रहा था कि सहसा छरे की धार-सी तीक्ष्ण जल-धारा से मैं चीर दिया गया। 61. उण्हाभितत्तो संपत्तो असिपत्तं महावणं / ___ असिपहिं पडन्तेहि छिन्नपुव्यो अणेगसो॥ [61] गर्मी से अत्यन्त तप जाने पर मैं (छाया में विश्राम के लिए) असिपत्र महावन में पहुँचा, किन्तु वहाँ गिरते हुए असिपत्रों ( ---खड्ग-से तीक्ष्ण धार वाले पत्तों) से अनेक बार छेदा गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org