________________ उन्नीसा अध्ययन : मृगापुत्रीय] [317 ___ 48. जहा इहं अगणी उण्हो एत्तोऽणन्तगुणे तहिं / नरएसु वेयणा उण्हा अस्साया वेइया मए // [48] जैसे यहाँ अग्नि उष्ण है, उससे अनन्तगुणी अधिक असाता (-दुःख) रूप उष्णवेदना .. मैंने नरकों में अनुभव की है। 49. जहा इमं इहं सोयं एत्तोऽणंतगुणं तहिं / नरएसु वेयणा सीया अस्साया वेइया मए // [46] जैसे यहाँ यह ठंड (शीत) है, उससे अनन्तगुणी अधिक असाता (-दुःख) रूप शीतवेदना मैंने नरकों में अनुभव की है।। 50. कन्दन्तो कंदुकुम्भीसु उड्डपाओ अहोसिरो। हुयासणे जलन्तम्मि पक्कपुन्यो अणन्तसो॥ [50] मैं नरक की कन्दुकुम्भियों में ( पकाने के लोहपात्रों में) ऊपर पैर और नीचे सिर करके प्रज्वलित (धधकती हुई) अग्नि में प्राक्रन्द करता (चिल्लाता) हुअा अनन्त बार पकाया गया हूँ। 51. महादवग्गिसंकासे मरुम्मि वइरवालुए। कलम्बवालुयाए य दडपुन्वो अणन्तसो॥ [51] महादावानल के तुल्य, मरुदेश को बालू के समान तथा वज्रबालुका (-वज्र के समान कर्कश एवं कंकरीली रेत) में और कलम्बबालुका (नदी के पुलिन) की (तपी हुई) बालू में अनन्त बार मैं जलाया गया हूँ। 52. रसन्तो कंदुकुम्भीसु उड्ड बद्धो प्रबन्धवो / करवत्त-करकयाईहिं छिन्नपुवो अणन्तसो // [52] बन्धु-जनों से रहित (असहाय) रोता-चिल्लाता हुअा मैं कन्दुकुम्भियों पर ऊँचा बांधा गया तथा करपत्र (करवत) और क्रकच (-पारे) आदि शस्त्रों से अनन्त बार छेदा गया हूँ। 53. अइतिक्खकंटगाइण्णे तुगे सिम्बलिपायवे / खेवियं पासबद्धणं कड्ढोकड्ढाहिं दुक्करं / / [53] अत्यन्त तीक्ष्ण कांटों से व्याप्त ऊँचे शाल्मलिवृक्ष पर पाश से बांध कर इधर-उधर खींचतान करके दुःसह कष्ट दे कर मुझे फैका (या खिन्न किया गया। 54. महाजन्तेसु उच्छू वा आरसन्तो सुभेरवं / पोलियो मि सकम्मेहिं पावकम्मो अणन्तसो // [54] अतीव भयानक प्राक्रन्दन करता हुआ मैं पापकर्मा अपने (अशुभ) कर्मों के कारण गन्ने की तरह बड़े-बड़े महाकाय यंत्रों में अनन्त बार पीला गया हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org