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________________ 302] [उत्तराध्ययनसूत्र महाबल राजर्षि का वृत्तान्त–महाबल हस्तिनापुर के अतुल बलशाली बल राजा का पुत्र था। यौवन में पदार्पण करते ही माता प्रभावती रानी और पिता बल राजा ने 8 राजकन्याओं के साथ महाबल का विवाह किया। एक बार नगर के बाहर उद्यान में विमलनाथ तीर्थंकर के शासन के धर्मघोष आचार्य पधारे / महाबलकुमार ने उनके दर्शन किये, प्रवचन सुना तो संसार से विरक्ति और मुनिधर्म के पालन में तीव्र रुचि हुई / माता-पिता से दीक्षा की अनुज्ञा लेने गया तो उन्होंने मोहवश उसे गृहस्थाश्रम में रह कर सांसारिक सुख भोगने और पिछली वय में दीक्षा लेने को कहा / परन्तु उसने उन्हें भी विविध युक्तियों से समझाया तो उन्होंने निरुपाय होकर दीक्षा की आज्ञा दी। महाबलकुमार वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर सहस्रमानववाहिनी शिविका पर आरूढ होकर सर्वसैन्य, नृत्य, गीत, वाद्य आदि से गगन गुंजाते हुए नगर के बाहर उद्यान में पहुँचा / मातापिता ने दीक्षा की आज्ञा दी / समस्त वस्त्राभूषण आदि उतार कर अपने केशों का लोच किया और गुरुदेव से दीक्षा ग्रहण को। दीक्षा ग्रहण करने के बाद महाबल मुनि ने 12 वर्ष तक तीव्र तपश्चरण किया। चौदह पूर्वो का अध्ययन किया और अन्तिम समय में एक मास का अनशन करके आयूष्य पूर्ण कर पंचम देवलोक में गए। वहाँ का 10 सागरोपम का आयुष्य पूर्ण कर वे वाणिज्यग्राम में सुदर्शन श्रेष्ठो के रूप में उत्पन्न हुए। चिरकाल तक श्रावकधर्म का पालन किया। एक बार भगवान् महावीर की धर्मदेशना सुन कर सुदर्शन श्रेष्ठी प्रतिबुद्ध हुना, याचकों को दान देकर प्रभु के चरणों में दीक्षा ग्रहण की / फिर सुदर्शन मुनि ने समस्त पूर्वो का अध्ययन करके उग्न तप से सर्व कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त किया।' क्षत्रियमुनि द्वारा सिद्धान्तसम्मत उपदेश 52. कहं धीरो अहेऊहिं उम्मत्तो व्व महि चरे ? एए विसेसमादाय सूरा दढपरक्कमा। [52] इन (भरत आदि) शूरवीर और दृढ़पराक्रमी (राजाओं) ने जिनशासन में विशेषता देख कर उसे स्वीकार किया था। अतः धीर साधक (एकान्त क्रिया, अक्रिया, विनय और अज्ञान रूप) कुहेतु वादों से प्रेरित हो कर उन्मत्त को तरह कैसे पृथ्वी पर विचर सकता है ? 53. अच्चन्तनियाणखमा सच्चा मे भासिया वई। अरिंसु तरन्तेगे तरिस्सन्ति अणागया। [53] मैंने ('जिनशासन ही आश्रयणीय है') यह अत्यन्त निदानक्षम (समुचित युक्तिसंगत) सत्य वाणी कही है। (इसे स्वीकार कर) अनेक (जीव अतीत में संसारसमुद्र से) पार हुए हैं, (वर्तमान में) पार हो रहे हैं और भविष्य में पार होंगे। 54. कह धोरे अहेऊहिं अताणं परियावसे ? सवसंगविनिम्मुक्के सिद्ध हवइ नीरए / –त्ति बेमि / 1. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर, भावनगर) भा. 2, पत्र 91 से 93 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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