________________ अठारहवाँ अध्ययन : संजयीय] [301 चारित्रपालन कर अन्त में केवलज्ञान पाया और 56 हजार वर्ष की कुल आयु पूर्ण करके सिद्धि प्राप्त की। विजय राजा राज्य त्याग कर प्रवजित 50. तहेव विजओ राया अणढाकित्ति पव्वए / रज्जं तु गुणसमिद्ध पयहित्तु महाजसो॥ [50] इसी प्रकार निर्मलकीर्ति वाले महायशस्वी विजय राजा ने गुणसमृद्ध राज्य का परित्याग करके प्रव्रज्या ग्रहण की। विवेचन–अणद्राकित्ती : तीन अर्थ--(१) अनातकोति-अनार्ता-पार्तध्यानरहित होकर दीन, अनाथ आदि को दान देने से होने वाली कीर्ति-प्रसिद्धि से उपलक्षित / (2) अनातकीति-. अनार्ता-सकल दोषों से रहित होने से अबाधित कीति वाले। (3) आज्ञार्थाकृति–अाज्ञा का अर्थ है-पागम तथा अर्थ शब्द का अर्थ है हेतु, अर्थात्-प्राज्ञार्थक प्राकृति- अर्थात् मुनिवेषात्मक प्राकृति। रज्जं गुणसमिद्ध: दो अर्थ--(१) राज्य के गुणों, अर्थात्--स्वामी, अमात्य, मित्र, कोश, राष्ट्र, दुर्ग और सैन्य ; इन सप्तांग राज्यगुणों से समृद्ध, अथवा (2) गुणों-शब्दादि विषयों से समृद्ध–सम्पन्न-राज्य / विजय राजा का संयम में पराक्रम द्वारकानगरी के ब्रह्मराज और उनकी पटरानी सुभद्रा का अंगजात द्वितीय बलदेव था। उसका छोटा भाई द्विपृष्ठ वासुदेव था। जो 72 लाख वर्ष की आयु पूर्ण करके नरक में गया। जबकि विजय ने वैराग्यपूर्वक प्रवजित होकर केवलज्ञान प्राप्त किया और 75 लाख वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर मोक्ष प्राप्त किया / महाबल राजर्षि ने सिद्धिपद प्राप्त किया 51. तहेवुग्गं तवं किच्चा अव्व क्खित्तेण चेयसा। महाबलो रायरिसो अद्दाय सिरसा सिरं / / [51] इसी प्रकार अनाकुल चित्त से उग्र तपश्चर्या करके राजर्षि महाबल ने सिर देकर सिर (शीर्षस्थ पद मोक्ष) प्राप्त किया। विवेचन अद्दाय सिरसा सिरं : दो भावार्थ (1) सिर देकर अर्थात्-जीवन से निरपेक्ष होकर सिर–समस्त जगत् का शीर्षस्थ सर्वोपरि-मोक्ष, ग्रहण-स्वीकार किया। (2) शीर्षस्थ--- सर्वोत्तम, श्री-केवलज्ञान- लक्ष्मी, ग्रहण करके परिनिर्वाण को प्राप्त किया। 1. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर, भावनगर) भा. 2, पत्र 90 2. बृहद्वृत्ति, पत्र 449 3. उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा. 3, पृ. 447 4. बहदवत्ति, पत्र 449 Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only