________________ अठारहवाँ अध्ययन : संजयीय] [291 करके नौ सौ साधुओं सहित अनशन ग्रहण किया। एक मास बाद आयुष्य पूर्ण होने पर सिद्ध पद प्राप्त किया / ' कुन्थुनाथ की अनुत्तरगति-प्राप्ति 39. इक्खागरायवसभो कुन्थू नाम नराहियो। विक्खायकित्ती धिइमं पत्तो गइमणुत्तरं / / [36] इक्ष्वाकुकुल के राजाओं में श्रेष्ठ (वृषभ) नरेश्वर, विख्यातकीत्ति तधा धृतिमान् कुन्थुनाथ ने अनुत्तरगति प्राप्त की। विवेचन--कुन्थुनाथ भगवान की संक्षिप्त जीवनगाथा पूर्वमहाविदेह क्षेत्र में प्रावर्तविजय में खड्गी नामक नगरी का राजा 'सिंहावह' था। एक बार उसने संसार से विरक्त हो कर श्रीसंवराचार्य से दीक्षा ग्रहण की, तत्पश्चात् 20 स्थानकों के सेवन से तीर्थकरनामकर्म का उपार्जन किया। चिरकाल तक चारित्रपालन करके अन्त में अनशन ग्रहण कर आयुष्य का अन्त होने पर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव हुआ। वहाँ से च्यवन कर हस्तिनापुर नगर के राजा सूर की रानी श्रीदेवी की कुक्षि में अवतरित हए / प्रभ गर्भ में पाए थे, तब से ही सभी शत्रु राजा कुन्थुसम अल्पसत्त्व वाले हो गए तथा माता ने भी स्वप्न में कुत्स्थ-अर्थात- पृथ्वीगत रत्नों के स्तुप (संचय) को देखा था। इस कारण महोत्सवपूर्वक उसका नाम 'कुन्थु' रखा गया / युवावस्था में आने पर उनका अनेक कन्याओं के साथ पणिग्रहण हया / वे राज्य कर रहे थे, तभी उनकी प्रायुधशाला में चक्ररत्न चिरकाल तक राज्य का पालन किया। एक बार लोकान्तिक देवों द्वारा तीर्थ-प्रवर्तन के लिए अनुरोध किये जाने पर कुन्थु चक्रवर्ती ने अपने पुत्र को राज्य सौंप कर वार्षिक दान दिया और हजार राजाओं के साथ चारित्र ग्रहण किया। तत्पश्चात् अप्रमत्त विचरण करते हुए 16 वर्ष बाद उन्हें उसी सहस्राम्रवन में 4 घातिकर्म का क्षय होते ही केवलज्ञान प्राप्त हुआ / तीर्थ-स्थापना की / अन्त में हजार मुनियों सहित सम्मेतशिखर पर एक मास के अनशन से मुक्ति प्राप्त की। अरनाथ की संक्षिप्त जीवनगाथा 40. सागरन्तं जहित्ताणं भरह नरवरीसरो। __ अरो य प्ररयं पत्तो पत्तो गइमणुत्तरं / / [40] समुद्रपर्यन्त भारतवर्ष का (राज्य) त्याग कर कर्मरजरहित अवस्था को प्राप्त करके नरेश्वरों में श्रेष्ठ 'पर' ने अनुत्तरगति प्राप्त की। विवेचन-अरनाथ को अनुत्तरगति-प्राप्ति-जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में वत्स नामक विजय के अन्तर्गत सुसीमा नगरी थी। वहाँ के राजा धनपति ने संसार से विरक्त हो कर समन्तभद्र मुनि से 1. उत्तरा. (गुजरातो, भावनगर से प्रकाशित) भा. 2, पत्र 64 2. उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर) भा. 2, पत्र 64-65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org