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________________ "सुसाणे सुन्नगारे वा, रक्खमूले व एगयो। अकुक्कुप्रो निसीएज्जा, न य वित्तासए परं।" -~-उत्तरा. 220 तुलना कीजिए "पांसुभिः समभिच्छिन्नः, शून्यागारप्रतिश्रयः / वक्षमूलनिकेतो वा, त्यक्तसर्वप्रियाप्रियः / / " -शान्तिपर्व 9 / 13 "सोच्चाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकण्टगा। तुसिणीग्रो उवेहेज्जा, न तायो मणसीकरे।" ---उत्तरा. 2 / 25 तुलना कीजिए "सुरवा रुसितो बहुं वाचं, समणाणं पुथुवचनानं / फरुसेन तेन पतिवज्जा, न हि सन्तो पटिसेनिकरोन्ति // " -सुत्तनिपात, व. 8, 14118 "अणुक्कसाई, अप्पिच्छे, अन्नाएसी अलोलुए / रसेसु नाणुगिज्झज्जा, नाणुतप्पेज्ज पनवं // " -उत्तराध्ययन 2 / 39 तुलना कीजिए "चक्वहि नेव लोलस्स, गामकथाय पावरये सोतं / रसे व नानुगिज्झय्य, न च ममायेथ किंचि लोकस्मि // " -सुत्त. . 8, 14 / 8 प्रस्तुत अध्ययन में 'खेत्तं वत्थु हिरणं' वाली जो गाथा है, वैसी गाथा सुत्तनिपात में भी उपलब्ध है। देखिए-- "खेतं वत्थु हिरणं च, पसवो दासपोरुषं / चत्तारि कामखन्धाणि, तत्थ से उववज्जई॥" -उत्तराध्ययन 3317. तुलना कीजिए "खेत्तं वत्थुहिरञवा, गवारसं दासपोरिसं / थियो बन्धू पुथू कामे, यो नरो अनुगिज्झति // " -सुत्त. व. 5, 104. तृतीय अध्ययन में मानवता, सद्धर्मश्रवण, श्रद्धा और संयम-माधना में पूरुषार्थ—इन चार विषयों पर चिन्तन किया गया है। मानवजीवन अत्यन्त पुण्योदय से प्राप्त होता है। भगवान् महावीर ने "दुल्लहे खलु माणुसे भवे" कह कर मानवजीवन की दुर्लभता बताई है तो आचार्य शंकर ने भी "नरत्वं दुर्ग लोके" कहा है। तलसीदास भी रामचरितमानस में कहा--- "बड़े भाग मानुस तन पावा / सुर-नर मुनि सब दुर्लभ गावा // " [ 36 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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