________________ "कालीपव्वंगसंकासे, किसे धमणिसंतए। मायन्ने असणपाणस्स, प्रदीणमनसो चरे / / " -उत्तराध्ययन 2 / 3 तुलना कीजिए "काल (ला) पव्व गसंकासो, किसो धम्मनिसन्थतो। मत्त अन्नपाणम्हि, अदीनमनसो नरो॥" -थेरगाथा 246, 686 "अष्टचक्र हि तद् यानं, भूतयुक्तं मनोरथम् / तत्राद्यौ लोकनाथी तो, कृशौ धमनिसंतती॥" ----शान्तिपर्व 334.11 "एवं चीर्णेन तपसा, मुनिधर्ममनिसर्गतः" -भागवत 1131809 "पंसुकलधरं जन्तु, किसं धमनिसत्थतं / एक वनस्मि झायन्तं, तमहं ब्र.मि ब्राह्मणं // " -धम्मपद 26 / 13 "युटो य दंसमसएहि, समरेव महामुणी। नागो संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं॥" --उत्तराध्ययन 2010 तुलना कीजिए 'फुटो डंसेहि मसकेहि, अरस्मि ब्रहावने / नागो संगामसीसे व, सतो ताऽधिवासये।" --थेरगाथा 34, 247, 687 "एग एव चरे लाडे, अभिभूय परीसहे। गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए // " --उत्तराध्ययन 2018 तुलना कीजिए "एक एव चरेन्नित्यं, सिद्ध यर्थमसहायवान् / सिद्धिमेकस्य संपश्यन, न जहाति न हीयते // " -मनुस्मृति 6 / 42 "समाणो चरे भिक्ख, नेव कुज्जा परिग्गडं / असंसत्तो मिहत्थेहि. अणिएग्रो परिव्वए॥" --उत्तरा० 2019 तुलना कीजिए "अनिकेतः परितपन्, वृक्षमूलाश्रयो मुनिः / अयाचक: सदा योगी, स त्यागी पार्थ ! भिक्षुकः // " ---शान्तिपर्व 12 / 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org