________________ 238] [उत्तराध्ययनसूत्र विवेचन–'वंतासी : वान्ताशो'--भृगुपुरोहित के सपरिवार दीक्षित होने के बाद राजा द्वारा परित्यक्त धन को लावारिस समझ कर ग्रहण करना चाहता था, इसलिए रानी कमलावती ने प्रकारान्तर से राजा को वान्ताशी (वमन किये हुए का खाने वाला) कहा।' नाहं रमे.:-जैसे पक्षिणी पीजरे में आनन्द नहीं मानती, वैसे ही मैं भी जरा-मरणादि उपद्रवों से पूर्ण भवपंजर में आनन्द नहीं मानती।' संताणछिन्ना : छिन्नसंताना-स्नेह-संतति-परम्परागत राग के बन्धन को काट कर / निरामिसा, सामिसं आदि शब्दों का भावार्थ-४१ वीं गाथा में निरामिसा का, 46 वीं में सामिसं, निरामिसं,आमिसं और निरामिसा शब्दों का चार बार प्रयोग हुआ है / अन्त में 46 वीं गाथा में 'निरामिसा' शब्द प्रयुक्त हुअा है। प्रथम अन्तिम निरामिषा शब्द का अर्थ है--गृद्धि हेतुभूत मनोज्ञ शब्दादि कामभोग अथवा धन / 46 वी गाथा के प्रथम दो चरणों में वह मांस के अर्थ में तथा शेष स्थानों में गृद्धिहेतुभूत मनोज्ञ शब्दादि कामभोग के अर्थ में प्रयुक्त है / / परिग्गहारंभनियत्तदोसा : दो रूप : दो अर्थ---(१) परिग्रहारम्भनिवृत्ता और अदोषा (दोषरहित) (2) परिग्रहारम्भदोषनिवृत्ता-परिग्रह और प्रारम्भरूप दोषों से निवृत्त / लभूयविहारिणो : दो अर्थ-(१) वायु की तरह लघुभूत-अप्रतिबद्ध हो कर विचरण करने वाले, (2) लघु अर्थात् संयम में विचरण करने के स्वभाव वाले / ' दिया कामकमा इव-काम-इच्छानुसार क्रमा- चलने वाले / अर्थात्---जैसे पक्षी स्वेच्छानुसार जहाँ चाहें, वहाँ उन्मुक्त एवं स्वेच्छापूर्वक भ्रमण करते हैं, वैसे हम भी स्वेच्छा से स्वतंत्रतापूर्वक विचरण करेंगे। बद्धा फंदंते-बद्ध अनेक उपायों से नियंत्रित-सुरक्षित किये जाने पर भी स्पन्दन करते हैंक्षणिक हैं, इसलिए चले जाते हैं।' राजा, रानी की प्रवज्या एवं छहों मुमुक्षु आत्माओं की क्रमशः मुक्ति 49. चइत्ता विउलं रज्जं कामभोगे य दुच्चए / निविसया निरामिसा निन्नेहा निप्परिग्गहा // 4i6] विशाल राज्य और दुस्त्यज कामभोगों का परित्याग कर वे राजा और रानी भी निविषय (विषयों की आसक्ति से रहित), निरामिष, स्नेह-(सांसारिक पदार्थों के प्रति अासक्ति) से रहित एवं निष्परिग्रह हो गए। 1. बृहद्वत्ति, पत्रांक 408 2. वही, पत्र 409 3. वही, पत्र 409-410 4. वही, पत्र 409 5. वही, पत्र 410 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org