________________ शासन-हीनता के काले-कजराले बादल उमड़-घुमड़ कर मंडरा रहे हैं / उसका मूल कारण जीवन के ऊषा काल से ही व्यक्ति में विनय का अभाव होता जाना है और यही प्रभाव पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय जीवन में शैतान की प्रांत की तरह बढ़ रहा है, जिससे न परिवार सुखी है, न समाज सुखी है और न राष्ट्र के अधिनायक ही शान्ति में हैं। प्रथम अध्ययन में शान्ति का मूलमंत्र विनय को प्रतिपादित करते हुए उसकी महिमा और मरिमा के सम्बन्ध में विस्तार से निरूपण है। प्रथम अध्ययन में विनय का विश्लेषण करते हुए जो गाथाएँ दी गई हैं, उनकी तुलना महाभारत, धम्मपद और थेरीगाथा में आये हुए पद्यों के साथ की जा सकती है / देखिए "नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए / कोहं असच्चं कुब्वेज्जा, धारेज्जा, पियमप्पिय // " --उत्तरा. 1114 तुलना कीजिए "नापृष्टः कस्यचिद् ब्रूयात्, नाप्यन्यायेन पृच्छतः / ज्ञानवानपि मेधावी, जडवत् समुपाविशेत् // " -शान्तिपर्व 287135 "अप्पा चेव दमेयब्बो, अप्पा हु खलु दुद्दमो / अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य॥" ---उत्तरा. 115 तुलना कीजिए "अत्तानने तथा कपिरा, यथञ्चमनुसासति (?), सुदन्तो वत दम्मेथ, अत्ता हि किर दुद्दमो / / " -धम्मपद 12 // 3 "पडिणीयं च बुद्धाणं, बाया अदुव कम्मुणा / प्रावी वा जइ वा रहस्से, नेव कुज्जा कयाइ वि।" --उत्तरा. 1117 तुलना कीजिए "मा कासि पापक कम्म, प्रावि वा यदि वा रहो। सचे च पापकं कम्म, करिस्ससि करोसि वा॥" -थेरीगाथा 247 परोषह : एक चिन्तन द्वितीय अध्ययन में परिषह-जय के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। संयमसाधना के पथ पर कदम बढ़ाते समय विविध प्रकार के कष्ट पाते हैं, पर साधक उन कष्टों से घबराता नहीं है। वह तो उस झरने की तरह है, जो वन चट्टानों को चीर कर आगे बढ़ता है। न उसके मार्ग को पत्थर रोक पाते हैं और न गहरे गर्त ही। वह तो अपने लक्ष्य की प्रोर निरन्तर बढ़ता रहता है। पीछे लौटना उसके जीवन का लक्ष्य नहीं होता / [ 32] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org