________________ बारहवाँ अध्ययन : हरिकेशीय अध्ययन-सार * प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'हरिकेशीय' है / इसमें साधुजीवन अंगीकार करने के पश्चात् चाण्डाल कुलोत्पन्न हरिकेशबल महाव्रत, समिति, गुप्ति, क्षमा आदि दशविध श्रमणधर्म एवं तप, संयम की साधना करके किस प्रकार उत्तमगुणधारक, तपोलब्धिसम्पन्न, यक्षपूजित मुनि बने और जातिमदलिप्त ब्राह्मणों का मिथ्यात्व दूर करके किस प्रकार उन्हें सच्चे यज्ञ का स्वरूप समझाया; इसका स्पष्ट वर्णन किया है। संक्षेप में, इसमें हरिकेशबल के उत्तरार्द्ध (मुनि) जीवन का निरूपण है। * हरिकेशबल मुनि कौन थे? वे किस कुल में जन्मे थे ? मुनिजीवन में कैसे पाए ? चाण्डालकुल में उनका जन्म क्यों हुअा था? इससे पूर्वजन्मों में वे कौन थे? इत्यादि विषयों की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है / संक्षेप में, हरिकेशबल के जीवन से सम्बन्धित घटनाएँ इस प्रकार हैं* मथुरानरेश शंख राजा ने संसार से विरक्त होकर दीक्षा ग्रहण की। विचरण करते हुए एक बार वे हस्तिनापुर पधारे / भिक्षा के लिए पर्यटन करते हुए शंखमुनि एक गली के निकट पाए, वहाँ जनसंचार न देखकर निकटवर्ती गृहस्वामी सोमदत्त पुरोहित से मार्ग पूछा / उस गली का नाम 'हुतवह-रथ्या' था। वह ग्रीष्म ऋतु के सूर्य के ताप से तपे हुए लोहे के समान अत्यन्त गर्म रहती थी। कदाचित कोई अनजान व्यक्ति उस गली के मार्ग से चला जाता तो वह उसकी उष्णता से मूच्छित होकर वहीं मर जाता था। परन्तु सोमदत्त को मुनियों के प्रति द्वष था, इसलिए उसने द्वषवश मुनि को उसी हुतवह-रथ्या का उष्णमार्ग बता दिया / शंखमुनि निश्चल भाव से ईर्यासमितिपूर्वक उसी मार्ग पर चल पड़े। लब्धिसम्पन्न मुनि के प्रभाव से उनका चरणस्पर्श होते ही वह उष्णमार्ग एकदम शीतल हो गया। इस कारण मुनिराज धीरे-धीरे उस मार्ग को पार कर रहे थे / यह देख सोमदत्त पुरोहित के आश्चर्य का ठिकाना न रहा / वह उसी समय अपने मकान से नीचे उतर कर उसी हुतवहगली से चला / गली का चन्दन-सा शीतल स्पर्श जान कर उसके मन में बड़ा पश्चात्ताप हुअा। सोचने लगा---'यह मुनि के तपोबल का का ही प्रभाव है कि यह मार्ग चन्दन-सम-शीतल हो गया / इस प्रकार विचार कर वह मुनि के पास आकर उनके चरणों में अपने अनुचित कृत्य के लिए क्षमा मांगने लगा। शंखमुनि ने उसे धर्मोपदेश दिया, जिससे वह विरक्त होकर उनके पास दीक्षित हो गया। मुनि बन जाने पर भी सोमदेव जातिमद और रूपमद करता रहा। अन्तिम समय में उसने उक्त दोनों मदों की अालोचना-प्रतिक्रमणा नहीं की / चारित्रपालन के कारण मर कर वह स्वर्ग में गया / देव-पायुष्य को पूर्ण कर जातिमद के फलस्वरूप मृतगंगा के किनारे हरिकेशगोत्रीय चाण्डालों के अधिपति 'बलकोट' नामक चाण्डाल की पत्नी 'गौरी' के गर्भ से पुत्र-रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'बल' रखा गया। यही बालक आगे चल कर 'हरिकेशबल' कहलाया। पूर्वजन्म में उसने रूपमद किया था, इस कारण वह कालाकलूटा, कुरूप और बेडौल हुआ उसके सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org