________________ केवली भद्रबाहु द्वारा नि' ढ या कृत हैं।४७ भद्रबाहु का समय वीरनिर्वाण की दूसरी शती है, इसलिए प्रस्तुत अध्ययन की रचना भद्रबाहु के पश्चात् होनी चाहिए। अन्तकृशा आदि प्राचीन भागमसाहित्य में श्रमण-श्रमणियों के चौदह पूर्व, म्यारह अंग या बारह अंगों के अध्ययन का वर्णन मिलता है। 8 अंगबाह्य या प्रकीर्णक सूत्र के अध्ययन का वर्णन उपलब्ध नहीं होता। किन्तु उत्तराध्ययन के अदाईसवें अध्ययन में अंग और अंगबाह्य, इन दो प्राचीन विभागों के अतिरिक्त म्यारह अंग, प्रकीर्णक और दृष्टिवाद का उल्लेख उपलब्ध होता है। अतः प्रस्तुत अध्ययन भी उत्तरकालीन प्रागमव्यवस्था की संरचना होनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि अट्ठाईसवें अध्ययन में द्रव्य, गुण 51, पर्याय 52 की जो संक्षिप्त परिभाषायें दी गई हैं, वैसी परिभाषायें प्राचीन पागम साहित्य में उपलब्ध नहीं हैं / वहाँ पर विवरणात्मक अर्थ की प्रधानता है, अतः यह अध्ययन अर्वाचीन प्रतीत होता है। दिगम्बर साहित्य में उत्तराध्ययन की विषय-वस्तु का संकेत किया गया है / वह इस प्रकार है धवला में लिखा है. उत्तराध्ययन में उद्गम, उत्पादन और एषणा से सम्बन्धित दोषों के प्रायश्चित्तों का विधान है५३ और उत्तराध्ययन उत्तर पदों का वर्णन करता है / 54 47.. (क) वदामि भद्दबाहुं पाईणं चरिमसयलसुयणाणि / सुसस्स कारग मिसि दसासु कप्पे य ववहारे / / ---दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति, गा. 1 (ख) तेण भगवता आयारपकप्प-दसाकप्प-वबहारा व नवमपुवनीसंदभूता निज्जूढा / ---पंचकल्पभाप्य, गा.२३ त्रुणि 48. (क) सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ / ----अन्तकृत.. प्रथम वर्ग (ख) वारसंगी अन्तकृतदशा, 4 वर्ग, अध्य. 1 (ग) सामाइय माइयाई चोद्दसपुव्वाई अहिज्ज इ / --अन्तकृतदशा, 1 वर्ग, अध्य.१ 49. सो होइ अभिगमरुई, सुयनाणं जेण प्रस्थो दिटें। एक्कारस अंगाई, पइष्णगं दिट्ठिवाग्रो य॥ --उत्तरा. 28.23 50. द्रव्य-गुणाणमासो दव्वं (द्रव्य गुणों का आश्रय है)। तुलना करें--क्रियागूणवत समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम् / -वैशेषिकदर्शन, प्र. अ. प्रथम प्राह्निक, सूत्र 15 51. गुण--एगदम्वस्सिया गुणा / तुलना करें-- . द्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोगविभागेष्वकारणमनपेक्ष इति गुणलक्षणम् / --वैशे. दर्शन, प्र. अ. प्रथम प्रालिक सू. 16 52. पर्याय---लक्खणं पज्जवाणं तु उभो अस्सिया भवे / -उत्तराध्ययन 53. उत्तरज्झयणं उग्गम्मुप्पायणेसणदोसमयपायच्छित्तविहाणं कालादिविसे सिदं वणे दि / ---धवला, पत्र 545 हस्तलिखित प्रति 54. उत्तरज्झयणं उत्तरपदाणि वण्णे इ / --धवला, पृ. 97 (सहारनपुर प्रति) [28] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org