________________ 176] [उत्तराध्ययनसूत्र 4. अह अहि ठाणेहि सिक्खासीले त्ति वुच्चई / - अहस्सिरे सया दन्ते न य मम्ममुदाहरे // 5. नासीले न विसीले न सिया अइलोलुए। ____ अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले ति बुच्चई // [4-5] इन आठ स्थानों (कारणों) से शिक्षाशील कहलाता है—(१) जो सदा हंसी-मज़ाक न करे, (2) जो दान्त (इन्द्रियों और मन का दमन करने वाला) हो, (3) जो दूसरों का मर्मोद्घाटन नहीं करे, (4) जो अशील (-सर्वथा चारित्रहीन) न हो, (5) जो विशील (---दोषों-अतिचारों से कलंकित व्रत-चारित्र वाला) न हो, (6) जो अत्यन्त रसलोलुप न हो, (7) (क्रोध के कारण उपस्थित होने पर भी) जो क्रोध न करता हो (क्षमाशील हो) और (8) जो सत्य में अनुरक्त हो, उसे शिक्षाशील (बहुश्रुतता को उपलब्धि वाला) कहा जाता है। विवेचन--शिक्षा के दो प्रकार ग्रहणशिक्षा और प्रासेवनशिक्षा / शास्त्रीयज्ञान गुरु से प्राप्त करने को ग्रहणशिक्षा और गरु के सान्निध्य में रहकर तदनुसार प्राचरण एवं अभ्यास करने को आसेवनशिक्षा कहते हैं। अभिमान आदि कारणों से ग्रहणशिक्षा भी प्राप्त नहीं होती तो प्रासेवनशिक्षा कहाँ से प्राप्त होगी? जो शिक्षाशील होता है, वह बहुश्रुत होता है।' स्तम्भ का भावार्थ अभिमान है। साब्ध- अभिमानी को कोई शास्त्र नहीं पढ़ाता, क्योंकि वह विनय नहीं करता / अतः अभिमान शिक्षाप्राप्ति में बाधक है। पमाएणं-प्रमाद के मुख्य 5 भेद हैं-मद्य (मद्यजनित या मद्य), विषय, कषाय, निद्रा और विकथा। यों तो आलस्य भी प्रमाद के अन्तर्गत है, किन्तु यहाँ प्रालस्य-- लापरवाही, उपेक्षा या उत्साहहीनता के अर्थ में है। अबहुश्रुत होने के पांच कारण-प्रस्तुत पांच कारणों से मनुष्य शिक्षा के योग्य नहीं होता। शिक्षा के अभाव में ऐसा व्यक्ति अबहुश्रुत होता है / सिक्खासीले-शिक्षाशील : दो अर्थ-(१) शिक्षा में जिसको रुचि हो, अथवा (2) जो शिक्षा का अभ्यास करता हो। प्रहस्सिरे-अहसिता-अकारण या कारण उपस्थित होने पर भी जिसका स्वभाव हंसीमजाक करने का न हो। सच्चरए- सत्यरत : दो अर्थ-(१) सत्य में रत हो या (2) संयम में रत हो / अकोहणे-अक्रोधन-जो निरपराध या अपराधी पर भी क्रोध न करता हो / अविनीत और विनीत का लक्षण 6. अह चउदसहि ठाणेहि वट्टमाणे उ संजए। सो उ निव्वाणं च न गच्छइ।। 1. बृहद्वृत्ति, पत्र 345 2. वही, पत्र 345 3. (क) उत्तरा. चूमि, पृ, 196 (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र 336 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org