________________ 170] [उत्तराध्ययनसूत्र 31. न हु जिणे अज्ज दिस्सई बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए / संपइ नेयाउए पहे समयं गोयम ! मा पमायए / [31] (भविष्य में लोग कहेंगे-) आज जिन नहीं दीख रहे हैं और जो मार्गदर्शक हैं वे अनेक मत के (एक मत के नहीं) दीखते हैं। किन्तु इस समय तुझे न्यायपूर्ण (अथवा पार ले जाने वाला, मोक्ष-) मार्ग उपलब्ध है / अतः गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत कर / 32. अवसोहिय कण्टगापहं ओइण्णो सि पहं महालयं / गच्छसि मग्गं विसोहिया समयं गोयम ! मा पमायए / [32] हे गौतम ! (तू) कण्टकाकीर्ण पथ छोड़कर महामार्ग (महापुरुषों द्वारा सेवित मोक्षमार्ग) पर आया है / अतः दृढ निश्चय के साथ बहुत संभलकर इस मार्ग पर चल / एक समय का भी . प्रमाद करना उचित नहीं है। 33. अबले जह भारवाहए मा मग्गे विसमेवगाहिया / पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम ! मा पमायए // [33) दुर्बल भारवाहक जैसे विषम मार्ग पर चढ़ जाता है, तो बाद में पश्चात्ताप करता है, उसकी तरह, हे गौतम ! तू विषम मार्ग पर मत जाना; अन्यथा, तुझे भी बाद में पछताना पड़ेगा। अतः समयमात्र का भी प्रमाद मत कर / 34. तिण्णो हु सि अण्णवं महं कि पुण चिट्ठसि तीरमागओ। __अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम ! मा पमायए। [34] हे गौतम ! तू विशाल महासमुद्र को तो पार कर गया है, अव तीर (किनारे) के पास पहुँच कर क्यों खड़ा है ? उसके पार पहुंचने में शीघ्रता कर / समयमात्र का भी प्रमाद न कर / 35. अकलेवरसेणिमुस्सिया सिद्धि गोयम ! लोयं गच्छसि / खेमं च सिवं अणुत्तरं समयं गोयम ! मा पमायए / [35] हे गौतम ! अकलेवरों (-अशरीर सिद्धों) की श्रेणी (क्षपकश्रेणी) पर आरूढ़ होकर तू भविष्य में क्षेम, शिव और अनुत्तर सिद्धि-लोक (मोक्ष) को प्राप्त करेगा। अतः गौतम ! क्षणभर का भी प्रमाद मत कर। 36. बुद्ध परिनिवडे चरे गामगए नगरे व संजए / सन्तिमग्गं च बूहए समयं गोयम! मा पमायए / [36] प्रबुद्ध (तत्त्वज्ञ या जागृत), उपशान्त और संयत हो कर तू गाँव और नगर में विचरण कर; शान्ति-मार्ग की संवृद्धि कर / गौतम ! इसमें समयमात्र का भी प्रमाद न कर / विवेचन–अप्रमाद-साधना के नौ मूलमंत्र प्रस्तुत गाथानों में भगवान ने गौतमस्वामी को अप्रमाद की साधना के नौ मूलमंत्र बताए हैं-(१) मेरे प्रति तथा सभी पदार्थों के प्रति स्नेह को विच्छिन्न कर दो, (2) धन आदि परित्यक्त पदार्थों एवं भोगों को पुनः अपनाने का विचार मत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org