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________________ 168] [उत्तराध्ययनसूत्र 23. परिजरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते / से घाणबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए / [23] तुम्हारा शरीर (दिनानुदिन) जीर्ण हो रहा है तुम्हारे केश सफेद हो रहे हैं तथा पूर्ववर्ती घ्राणबल (नासिका से सूंघने का सामर्थ्य) भी घटता जा रहा है / (ऐसी स्थिति में) गौतम ! एक समय का भी प्रमाद मत करो। 24. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते / से जिन्म-बले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए। [24] तुम्हारा शरीर (प्रतिक्षण) सब प्रकार से जीर्ण हो रहा है तुम्हारे केश सफेद हो रहे हैं तथा तुम्हारा (रसग्राहक) जिह्वाबल (जीभ का रसग्रहण-सामर्थ्य) नष्ट हो रहा है / अतः गौतम ! क्षणभर का भी प्रमाद मत करो। 25. परिजूरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते / से फास-बले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए / [25] तुम्हारा शरीर सब तरह से जीर्ण हो रहा है, तुम्हारे केश सफेद हो रहे हैं तथा तुम्हारे स्पर्शनेन्द्रिय की स्पर्शशक्ति भी घटती जा रही है / अत: गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो। . 26. परिजरइ ते सरीरयं केसा पण्डुरया हवन्ति ते / से सव्वबले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए / [26] तुम्हारा शरीर सब प्रकार से कृश हो रहा है, तुम्हारे (पूर्ववर्ती मनोहर काले) केश सफेद हो रहे हैं तथा (शरीर के) समस्त (अवयवों का) बल नष्ट हो रहा है। ऐसी स्थिति में, गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो। 27. अरई गण्डं विसूइया आयंका विविहा फुसन्ति ते। विवडइ विद्धसइ ते सरीरयं समयं गोयम !मा पमायए / [27] (वातरोगादिजनित) उद्वेग (अरति), फोड़ा-फुसी, विसूचिका (हैजा-अतिसार आदि) तथा विविध प्रकार के अन्य शीघ्रघातक रोग (अातंक) तुम्हारे शरीर को स्पर्श (अाक्रान्त) कर सकते हैं, जिनसे तुम्हारा शरीर विपद्ग्रस्त (शक्तिहीन) तथा विध्वस्त हो सकता है। इसलिए हे गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो। विवेचन-पंचेन्द्रियबल की क्षीणता का जीवन पर प्रभाव-श्रोत्रेन्द्रियबल क्षीण होने से मनुष्य धर्मश्रवण नहीं कर सकता और धर्मश्रवण के बिना कल्याण-अकल्याण, श्रेय-प्रेय को जान नहीं सकता और ज्ञान के विना धर्माचरण अन्धा होता है, सम्यक धर्माचरण नहीं हो सकता / चक्षुरिन्द्रियवल क्षीण होने से जीवदया, प्रतिलेखना, स्वाध्याय, गुरुदर्शन प्रादि के रूप में धर्माचरण नहीं हो सकेगा। नासिका में गन्धग्रहणबल होने पर ही सुगन्ध-दुर्गन्ध के प्रति रागद्वेष का परित्याग करके समत्वधर्म का पालन किया जा सकता है, उसके अभाव में नहीं / जिह्वा में रसग्राहकबल तथा वचनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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