________________ 158] [उत्तराध्ययनसूत्र प्रविचक्षण (अतीव अभ्यास के कारण प्रवीणता प्राप्त) हैं, वे भी इसी (नमि राजर्षि की) तरह (धर्म में निश्चलता) करते हैं ! तथा कामभोगों से निवृत्त होते हैं; जैसे कि नमि राजर्षि / -ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन-नमेइ अप्पाणं : दो व्याख्या-(१) भावतः आत्मा को स्वतत्त्वभावना से विनत किया, (2) नमि ने अात्मा को नमाया-संयम के प्रति समर्पित कर दिया-झुका दिया / वइदेही—दो अर्थ---(१) जिसका विदेह नामक जनपद है, वह वैदेही, विदेहजनपदाधिप। (2) विदेह में होने वाली वैदेही-मिथिला नगरी / ' नमिप्रवज्या:नवम अध्ययन समाप्त // 1. बृहदवृत्ति, पत्र 320 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org