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________________ दशम अध्ययन : द्रुमपत्रक अध्ययन-सार * प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'द्रुमपत्रक' है, यह नाम भी पाद्यपद के आधार पर रखा गया है।' * प्रस्तुत अध्ययन की पृष्ठभूमि इस प्रकार है चम्पानगरी के पृष्ठभाग में पृष्ठचम्पा नगरी थी / वहाँ साल और महाशाल ये दो सहोदर भ्राता थे। शाल वहाँ के राजा थे और महाशाल युवराज / इनकी यशस्वती नाम की एक बहन थी। बहनोई का नाम पिठर और भानजे का नाम था-गागली। एक बार श्रमण भगवान् महावीर विहार करते हुए पृष्ठचम्पा पधारे। शाल और महाशाल दोनों भाई भगवान् को वन्दना के लिए गए / वहाँ उन्होंने भगवान् का धर्मोपदेश सुना / शाल का अन्तःकरण संसार से विरक्त हो गया / वह नगर में आया और अपने भाई के समक्ष स्वयं दीक्षा लेने की और उसे राज्य ग्रहण करने की बात कही तो महाशाल ने कहा-'मझे राज्य से कोई प्रयोजन नहीं। मैं स्वयं इस असार संसार से विरक्त हो गया हूँ। अतः आपके साथ प्रवजित होना चाहता हूँ। राजा ने अपने भानजे गागली को काम्पिल्यपुर से बुलाया और उसे राज्य का भार सौंप कर दोनों भाई भगवान के चरणों में दीक्षित हो गए। गागली राजा ने अपने माता-पिता को पृष्ठचम्पा बुला लिया। दोनों श्रमणों ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। एक बार भगवान महावीर राजगह से विहार करके चम्पानगरी जा रहे थे। तभी शाल और महाशाल मुनि ने भगवान के पास प्राकर सविनय प्रार्थना की-'भगवन् ! आपकी आज्ञा हो तो हम दोनों स्वजनों को प्रतिबोधित करने के लिए पृष्ठचम्पा जाना चाहते हैं।' भगवान् ने श्री गौतमस्वामी के साथ उन दोनों को जाने की अनुज्ञा दी। श्री गौतमस्वामी के साथ दोनों मुनि पृष्ठचम्पा पाए / वहाँ के राजा गागली और उसके माता-पिता को दीक्षित करके वे सब पुन: भगवान महावीर के पास आ रहे थे। मार्ग में चलते-चलते शाल और महाशाल के अध्यवसायों की पवित्रता बढ़ी-धन्य है गौतमस्वामी को, जो इन्होंने संसारसागर से पार कर दिया। उधर गागली आदि तीनों ने भी ऐसा विचार किया शाल महाशाल मुनि हमारे परम उपकारी हैं। पहले तो इनसे राज्य पाया और अब महानन्दप्राप्तिकारक संयम / इस प्रकार पांचों ही व्यक्तियों को केवलज्ञान हुआ। सभी भगवान् के पास पहुँचे / ज्यों ही शाल, महाशाल आदि पांचों केवलियों की परिषद् में जाने लगे तो गौतम ने उन सब को रोकते हुए कहा-'पहले त्रिलोकीनाथ भगवान् को वन्दना करो।' ___ भगवान् ने गौतम से कहा-'गौतम ! ये सब केवलज्ञानी हो चुके हैं। इनकी आशातना मत करो।' 1. दुमपत्तेणोवमियं, अहट्रिइए उवक्कमेण च / एत्थ कयं प्राइम्मी, तो दुमपत्तं ति अज्झयणं // 18 // –उत्त. नियुक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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