________________ नवम अध्ययन : नमिप्रव्रज्या [151 अष्टम प्रश्नोत्तर : गृहस्थाश्रम में ही धर्मसाधना के सम्बन्ध में 41. एयमलैं निसामित्ता हेउकारण—चोइओ। तओ नमि रायरिसि देविन्दो इणमब्बवी-॥ [41] (राजर्षि के) इस वचन को सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित होकर देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से इस प्रकार कहा 24. 'घोरासमं चइत्ताणं अन्नं पत्थेसि पासमं / ___ इहेव पोसहरओ भवाहि मणुयाहिवा ! // ' (42] हे मानवाधिप ! आप घोराश्रम अर्थात्-गृहस्थाश्रम का त्याग करके अन्य आश्रम (संन्यासाश्रम) को स्वीकार करना चाहते हो; (यह उचित नहीं है / ) अाप इस (गृहस्थाश्रम में) में ही रहते हुए पौषधव्रत में तत्पर रहें। 43. एयमढ़ निसामित्ता हेउकारण--चोइओ। __तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी-॥ [43] (देवेन्द्र की) यह बात सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित नमिराजर्षि ने देवेन्द्र से इस प्रकार कहा-- -- 44. 'मासे मासे तु जो बालो कुसग्गेणं तु भुजए / न सो सुयक्खायधम्मस्स कलं अग्घइ सोलसि / / ' [44] जो बाल (अज्ञानी) साधक महीने-महीने का तप करता है और पारणा में कुश के अग्रभाग पर आए, उतना ही आहार करता है, वह सुप्राख्यात धर्म (सम्यक्चारित्ररूप मुनिधर्म) की सोलहवीं कला को भी नहीं पा सकता। विवेचन-घोराश्रम का अर्थ यहाँ गहस्थाश्रम किया गया है। वैदिकदष्टि से गृहस्थाश्रम को घोर अर्थात्--अल्प सत्त्वों के लिए अत्यन्त दुष्कर, दुरनुचर, कठिन इसलिए बताया गया है कि इसी आश्रम पर शेष तीन पाश्रम आधारित हैं। ब्रह्मचर्याश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम, इन तीनों प्राश्रमों का परिपालक एवं रक्षक गृहस्थाश्रम है / गृहस्थाश्रमी पर इन तीनों के परिपालन का दायित्व प्राता है, स्वयं अपने गार्हस्थ्य जीवन को चलाने और निभाने का दायित्व भी है तथा कृषि, पशुपालन, वाणिज्य, न्याय, सुरक्षा आदि गृहस्थाश्रम की साधना अत्यन्त कष्ट-साध्य है, जबकि अन्य पाश्रमों में न तो दूसरे आश्रमों के परिपालन की जिम्मेदारी है और न ही स्त्री-पुत्रादि के भरण-पोषण की चिन्ता है और न कृषि, पशुपालन, वाणिज्य, न्याय, सुरक्षा आदि का दायित्व है / इस दृष्टि से अन्य आश्रम इतने कष्टसाध्य नहीं हैं। महाभारत में बताया गया है कि जैसे सभी जीव माता का आश्रय लेकर जीते हैं, वैसे ही गृहस्थाश्रम का आश्रय लेकर सभी जीते हैं। मनुस्मृति में भी गृहस्थाश्रम को ज्येष्ठाश्रम कहा गया है। चूणिकार ने इसी आशय को व्यक्त किया है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org