________________ 142] उत्तराध्ययनसून द्वितीय प्रश्नोत्तर : जलते हुए अन्तःपुर-प्रेक्षण सम्बन्धी 11. एयमझें निसामित्ता हेउकारण—चोइओ। तो नमि रायरिसि देविन्दो इणमब्बवी--॥ [11] देवेन्द्र ने (नमि राजर्षि के) इस अर्थ (बात) को सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हो कर नमि राजर्षि को इस प्रकार कहा 12. 'एस अग्गी य बाऊ य एवं डज्झइ मन्दिरं / भयवं ! अन्तेउरं तेणं कीस णं नावपेक्खसि ? // ' [12] भगवन् ! यह अग्नि है और यह वायु है। (इन दोनों से) आपका यह मन्दिर (महल) जल रहा है / अतः आप अपने अन्तःपुर (रनिवास) की अोर क्यों नहीं देखते ? (अर्थात् जो वस्तु अपनी हो, उसकी रक्षा करनी चाहिए। यह अन्तःपुर आपका है, अतः इसकी रक्षा करना आपका कर्तव्य है / ) 13. एयम→ निसामित्ता हेउकारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमब्बवी-॥ [13] तत्पश्चात् देवेन्द्र की यह बात सुन कर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से यह कहा 14. 'सुहं वसामो जीवामो जेसि मो नस्थि किचण / मिहिलाए डज्माणोए न मे उज्झइ किंचण // [14] जिनके पास अपना कुछ भी नहीं है, ऐसे हम लोग सुख से रहते हैं और जीते हैं। अतः मिथिला के जलने से मेरा कुछ भी नहीं जलता। 15. चत्तपुत्तकलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणो। पियं न विज्जई किचि अप्पियं पि न विज्जए। 15] पुत्र और पत्नी आदि का परित्याग किये हुए एवं गृह कृषि आदि सावध व्यापारों से मुक्त भिक्षु के लिए न कोई वस्तु प्रिय होती है और न कोई अप्रिय है / 16. बहु खु मुणिणो भई अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वओ विप्पमुक्कस्स एगन्तमणुपस्सओ।' [16] (बाह्य और आभ्यन्तर) सब प्रकार (के संयोगों या परिग्रहों) से विमुक्त एवं 'मैं सर्वथा अकेला ही हूँ,' इस प्रकार एकान्त (एकत्वभावना) के अनुप्रेक्षक अनगार (गृहत्यागी) मुनि को भिक्षु (भिक्षाजीवी) होते हुए भी बहुत ही अानन्द-मंगल (भद्र) है। विवेचन-हेउकारण-चोइनो---इन्द्र के द्वारा प्रस्तुत हेतु और कारण-अपने राजभवन एवं अन्तःपुर की आपको रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ये आपके हैं / जो-जो अपने होते हैं, वे रक्षणीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.