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________________ (1) स-उत्तर -पहला अध्ययन (2) निरुत्तर ---छत्तीसवाँ अध्ययन (3) स-उत्तर-निरुत्तर --बीच के सारे अध्ययन परन्तु उत्तर शब्द की प्रस्तुत अर्थयोजना जिनदासगणी महत्तर की दृष्टि से अधिकृत नहीं है। वे नियुक्तिकार भद्रबाहु के द्वारा जो अर्थ दिया गया है, उसे प्रामाणिक मानते हैं। नियुक्ति की दृष्टि से यह अध्ययन आचारांग के उत्तरकाल में पढ़े जाते थे, इसीलिए इस आमम को 'उत्तर अध्ययन' कहा है / 28 उत्तराध्ययनचूणि व उत्तराध्ययन-बृहदवत्ति में भी प्रस्तुत कथन का समर्थन है। श्रुतकेवली प्राचार्य शय्यम्भव के पश्चात् यह अध्ययन दशवकालिक के उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे।२६ अतः ये उत्तर अध्ययन ही बने रहे हैं। प्रस्तुत उत्तर शब्द की ध्याख्या तर्कसंगत है। दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में उत्तर शब्द की विविध दृष्टियों से परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं। प्राचार्य वीरसेन ने षट्खण्डागम की धवलावृत्ति में लिखा-उत्तराध्ययन उत्तर पदों का वर्णन करता है। यह उत्तर शब्द समाधान का प्रतीक है। 3. अंगपन्नत्ति में आचार्य शुभचन्द्र ने उत्तर शब्द के दो अर्थ किये हैं। 31 [1] उत्तरकाल-किसी ग्रंथ के पश्चात् पढ़े जाने वाले अध्ययन / [2] उत्तर-प्रश्नों का उत्तर देने वाले अध्ययन। इन अर्थों में उत्तर और अध्ययनों के सम्बन्ध में सत्य तथ्य का उद्घाटन किया गया है। उत्तराध्ययन में 4,16, 23, 25 और 29 वाँ-ये अध्ययन प्रश्नोत्तरशैली में लिखे गये हैं। कुछ अन्य अध्ययनों में भी अांशिक रूप से कुछ प्रश्नोत्तर आये हैं। प्रस्तुत दृष्टि से उत्तर का 'समाधान' सूचक अर्थ संगत होने पर भी सभी अध्ययनों में वह पूर्ण रूप से घटित नहीं होता है। उत्तरबाची अर्थ संगत होने के साथ ही पूर्णरूप से व्याप्त भी है / इसलिए उत्तर का मुख्य अर्थ यही उचित प्रतीत होता है। __ अध्ययन का अर्थ पढ़ना है। किन्तु यहाँ पर अध्ययन शब्द अध्याय के अर्थ में व्यवहुत हुआ है। नियुक्ति और चणि में अध्ययन का विशेष अर्थ भी दिया है 32 पर अध्ययन से उनका तात्पर्य परिच्छेद से है। 27. विणयसूयं सउत्तरं जीवाजीवाभिगमो णिरुत्तरो, सर्वोत्तर इत्यर्थः, सेसज्झयणाणि सउत्तराणि णिरुत्तराणि य. कहं ? परीसहा विणयसुयस्स उत्तरा चउरंगिज्जस्स तु पुव्वा इति काउं णिरुत्तरं / -उत्तराध्ययनचूणि, पृष्ठ 6 28. कमउत्तरेण पगयं आयारस्सेव उवरिमाइं तु / तम्हा उ उत्तरा खलु अझयणा हुंति णायन्वा // -उत्तराध्ययन नियुक्ति, गा, 3 29. विशेषश्चायं यथा-- शय्यम्भवं यावदेष क्रमः तदाऽऽरतस्तु दशवकालिकोत्तरकालं पठवन्त इति / -उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति, पत्र 5 30. उत्तरज्झयणं उत्तरपदाणि वणे इ / -धवला, पृष्ठ 97 31. उत्तराणि अहिज्जति, उत्तरज्झयणं पदं जिणिदेहि / -अंगपण्णत्ति, 3/25, 26 32. (क) अज्झप्पस्साणयणं कम्माणं अवचनो उवचियाणं / प्रणवचो व जवाणं तम्हा अजयणमिच्छति // अहिगम्मति व अत्था अणेण अहियं व णयणमिच्छति / अहियं व साहु गच्छइ तम्हा अज्झयणमिच्छति / / -उत्तरा. नि., गाथा 6-3 (ख) उत्तराध्ययन वृहद्वृत्ति, पृष्ठ 6-7 (ग) उत्तराध्ययनचूणि, पृष्ठ 7 [24] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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