________________ उत्तराध्ययन की रचना के सम्बन्ध में नियुक्ति, चूणि तथा अन्य मनीषी एक मत नहीं हैं / नियुक्तिकार भद्रबाहु की दष्टि से उत्तराध्ययन एक व्यक्ति की रचना नहीं है / उनकी दृष्टि से उत्तराध्ययन कर्तृत्व की दृष्टि से चार भागों में विभक्त किया जा सकता है—१. अंगप्रभव, 2 जिनभाषित, 3. प्रत्येकबुद्ध-भाषित, ४.संबादसमुत्थित / 33 उत्तराध्ययन का द्वितीय अध्ययन अंगप्रभव है / वह कर्मप्रवादपूर्व के सत्तरहवें प्राभत से उद्धत है।३४ दशवा अध्ययन जिनभाषित है / 35 पाठवां अध्ययन प्रत्येकबुद्धभाषित है।३६ नौवां और तेईसवाँ अध्ययन संवादसमुत्थित है / 37 उत्तराध्ययन के मूलपाठ पर ध्यान देने से उसके कतत्व के सम्बन्ध में अभिनव चिन्तन किया जा सकता है। द्वितीय अध्ययन के प्रारम्भ में यह वाक्य पाया है-"सुयं मे पाउस ! तेणं भगवया एवमबखायं--इह खलु बावीस परीसहा समणेणं भगवया महावीरेण कासवेणं पवेइया / " सोलहवें अध्ययन के प्रारम्भ में यह वाक्य उपलब्ध है-"सुयं मे पाउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहि भगवंतेहि दस बंभचेरसमाहिठाणा पण्णत्ता।" उनतीसवें अध्ययन के प्रारम्भ में यह वाक्य प्राप्त है—"सुयं मे पाउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं---इह खलु सम्मत्तपरिक्कमे नाम ज्झयणे समजेणं भगवया महावीरेण कासवेणं पवेइए।" उपयुक्त वाक्यों से यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि दूसरा, उनतीसवाँ अध्ययन श्रमण भगवान महावीर के द्वारा प्ररूपित है और सोलहवाँ अध्ययन स्थविरों के द्वारा रचित है। नियुक्तिकार ने द्वितीय अध्ययन को कर्मप्रवादपूर्व से निरूढ माना है। जब हम गहराई से इस विषय में चिन्तन करते हैं तो सूर्य के प्रकाश की भाँति स्पष्ट ज्ञात होता है कि नियुक्तिकार ने उत्तराध्ययन को कर्तृत्व की दृष्टि से चार भागों में विभक्त कर उस पर प्रकाश डालना चाहा. पर उससे उसके कर्तृत्व पर प्रकाश नहीं पड़ता, किन्तु विषयवस्तु पर प्रकाश पड़ता है। दसवें अध्ययन में जो विषयवस्तु है, वह भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित है, किन्तु उनके द्वारा रचित नहीं। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन को अन्तिम गाथा "बुद्धस्स निसम्म भामियं" से यह बात स्पष्ट होती है। इसी प्रकार दूसरे व उनतीसवें अध्ययन के प्रारम्भिक वाक्यों से भी यह तथ्य उजागर होता है। 33. अंगप्पभवा जिणभासिया य पत्त यबुद्धसंवाया / बंधे मुक्खे य कया छत्तीसं उत्तरज्झयणा / / —उत्तराध्ययननियुक्ति, मा. 4 34. कम्मप्पवायपुटवे सत्तरसे पाहुडंमि जं सुत्त / सणयं सोदाहरणं तं चेव इहपि णायव्वं / / --उत्तराध्ययन नियुक्ति, मा. 69 35. (क) जिणभासिया जहा दुमपत्तगादि / - उत्तराध्ययनचूणि, पृष्ठ 7 (ख) जिनभाषितानि यथा द्र मपुष्पिकाऽध्ययनम् / -उत्तराध्ययन बृहद्वत्ति, पत्र 5 36. (क) पत्तेयबुद्धभासियाणि जहा काविलिज्जादि / --उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ 7 (ख) प्रत्येकबुद्धाः कपिलादयः तेभ्य उत्पन्नानि यथा कापिलियाध्ययनम् / -उत्तराध्ययन बहदवत्ति, पत्र 5 37. संबायो जहा णमिपव्वज्जा केसिगोयमेज्जं च / --उत्तराध्ययनचूणि, पृष्ठ 7 -~~-उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति, पत्र 5 [25 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org