________________ अष्टम अध्ययन : कापिलीय] [ 133 उपसंहार 20. इइ एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं / तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति तेहिं आराहिया दुवे लोगा। -त्ति बेमि। [20] इस प्रकार विशुद्ध प्रज्ञा वाले कपिल (केवली-मुनिवर) ने इस (साधु) धर्म का प्रतिपादन किया है / जो इसकी सम्यक् आराधना करेंगे, वे संसारसागर को पार करेंगे और उनके द्वारा दोनों ही लोक पाराधित होंगे। —ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन--आराहिया पाराधित किये, सफल कर लिये।" // कापिलीय : अष्टम अध्ययन समाप्त / / [ 1. बृहद्वृत्ति, पत्र 297 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org