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________________ नमिप्रव्रज्या : नवम अध्ययन अध्ययन-सार / प्रस्तुत नौवें अध्ययन का नाम 'नमिप्रव्रज्या' है। मिथिला के राजर्षि नमि जब विरक्त एवं संबुद्ध होकर दीक्षा ग्रहण करने लगे, तब देवेन्द्र ने ब्राह्मणवेष में आकर उनके त्याग, वैराग्य, निःस्पृहता आदि की परीक्षा ली। इन्द्र ने लोकजीवन की नीतियों से सम्बन्धित अनेक प्रश्न प्रस्तुत किये। राजर्षि नमि ने प्रत्येक प्रश्न का समाधान अन्तस्तल को गहराई में पैठ कर श्रमणसंस्कृति और आध्यात्मिक सिद्धान्त को दृष्टि से किया। इन्हीं प्रश्नोत्तरों का वर्णन प्रस्तुत अध्ययन में अंकित किया गया है। * प्रतिबुद्ध होने पर ही मुनि बना जाता है। प्रतिबुद्ध तीन प्रकार से होते हैं—(१) स्वयंबुद्ध (किसी के उपदेश के बिना स्वयं बोधि प्राप्त), (2) प्रत्येकबुद्ध (किसी बाह्य घटना के निमित्त से प्रतिबुद्ध) और (3) बुद्ध-बोधित (बोधिप्राप्त व्यक्तियों के उपदेश से प्रतिबुद्ध)। प्रस्तुत शास्त्र के 8 वें अध्ययन में स्वयम्बुद्ध कपिल का, नौवें अध्ययन में प्रत्येकबुद्ध नमि का और अठारहवें अध्ययन में बुद्ध-बोधित संजय का वर्णन है।' इस अध्ययन का सम्बन्ध प्रत्येकबुद्ध मुनि से है। यों तो चार प्रत्येकबुद्ध समकालीन हुए हैं-(१) करकण्डु, (2) द्विमुख, (3) नमि और (4) नग्गति / ये चारों प्रत्येकबुद्ध पुष्पोत्तर विमान से एक साथ च्युत होकर मनुष्यलोक में आए। चारों ने एक साथ दीक्षा ली, एक ही समय में प्रत्येकबुद्ध हुए, एक ही समय में केवली और सिद्ध हुए। करकण्डु कलिंग का, द्विमुख पंचाल का, नमि विदेह का और नग्गति गन्धार का राजा था। चारों के प्रत्येकबुद्ध होने में क्रमशः वृद्ध बैल, इन्द्रध्वज, एक कंकण को निःशब्दता और मंजरीरहित आम्रतरु, ये चारों घटनाएँ निमित्त बनीं। * नमि राजर्षि के प्रत्येकबुद्ध होकर प्रवज्याग्रहण करने की घटना इस प्रकार है मालव देश के सुदर्शनपुर का राजा मणिरथ था। उसका छोटा भाई, युवराज युगबाहु था। मदनरेखा युगबाहु की पत्नी थी। मदनरेखा के रूप में आसक्त मणिरथ ने छल से अपने छोटे भाई की हत्या कर दी। गर्भवती मदनरेखा ने एक वन में एक पुत्र को जन्म दिया / उस शिशु को मिथिलानृप पद्मरथ मिथिला ले आया। उसका नाम रखा–नमि / यही नमि आगे चल 1. नन्दीसूत्र 30 2. (क) अभिधान राजेन्द्र कोष, भा. 4 ‘णमि' शब्द, पृ. 1810 (ख) उत्तराध्ययन प्रियदर्शिनी टीका, भा. 2, पृ. 330 से 360 तक (ग) पुप्फुत्तरामो चवणं पब्वज्जा होइ एगसमएणं / पत्तेयबुद्ध-केवलि-सिद्धिगया एगसमएणं // -उत्त. नियुक्ति, गा. 270 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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