________________ अष्टम अध्ययन : कापिलीय] [131 अंगविद्या-शरीर के अवयवों के स्फुरण (फड़कने) से शुभाशुभ बताने वाला शास्त्र / चूणिकार ने अंगविद्या का अर्थ--आरोग्यशास्त्र कहा है।' समाहिजोएहि : समाधियोगों से-(१) समाधि--चित्तस्वस्थता, तत्प्रधान योग-मनवचन-कायव्यापार-समाधियोग; (2) समाधि-शुभ चित्त की एकाग्रता, योग--प्रतिलेखना आदि प्रवृत्तियाँ समाधियोग / 2 कामभोगरसा--दो अर्थ-(१) तथाविध कामभोगों में अत्यन्त प्रासक्ति वाले, (2) कामभोगों एवं रसों-(शृगारादि या मधुर, तिक्त प्रादि रसों) में गृद्ध / ' आसुरे काए : दो अर्थ-(१) असुरदेवों के निकाय में, (2) अथवा रौद्र तिर्यक्योनि में / ' बोही-बोधि-(१) बोधि का अर्थ है-परलोक में अगले जन्म में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रात्मक जिनधर्म की प्राप्ति, (2) त्रिविधिबोधि-ज्ञानबोधि , दर्शनबोधि और चारित्रबोधि / दुष्पूर लोभवृत्ति का स्वरूप और त्याग की प्रेरणा 16. कसिणं पि जो इमं लोयं पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स / तेणावि से न संतुस्से इइ दुप्पूरए इमे आया। [16] यदि धन-धान्य से पूर्ण यह समग्र लोक भी किसी (एक) को दे दिया जाए, तो भी वह उससे सन्तुष्ट नहीं होगा। इतनी दुष्पूर है यह (लोभाभिभूत) अात्मा ! 17. जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोहो पवढई। दोमास - कयं कज्ज कोडीए वि न निठ्ठियं / / [17] जैसे-जैसे लाभ होता है, वैसे-वैसे लोभ बढ़ता है / दो माशा सोने से निष्पन्न होने वाला कार्य करोड़ों (स्वर्ण-मुद्राओं) से भी पूरा नहीं हुआ। विवेचन-कपिलकेवली का प्रत्यक्ष पूर्वानुभव-इन दो गाथाओं में वर्णित है। न संतुस्से-धन-धान्यादि से परिपूर्ण समग्र लोक के दाता से भी लोभवृत्ति संतुष्ट नहीं 1. (क) लक्ष्यतेऽनेनेति लक्षणं, सामुद्रवत् / ' उत्त. चूणि, पृ. 175 (ख) लक्षणं च शुभाशुभसूचकं पुरुषलक्षणादि, रूढितः तत्प्रतिपादक शास्त्रमपि लक्षणं / - बृहद्वृत्ति, पत्र 295 (ग) वही, पत्र 295 : 'अंगविद्यां च शिरःप्रभृत्यंगस्फुरणतः शुभाशुभसूचिकाम् / ' (घ) अंगविद्या नाम आरोग्यशास्त्रम् / -उत्त. चूणि, पृ. 175 2. बृहद्वृत्ति, पत्र 295 3. बृहद्वृत्ति, पत्र 296 4. (क) वही, पत्र 296 (ख) चूणि, पृ. 175-176 5. (क) बोधि:--प्रेत्य जिनधर्मावाप्तिः / –बृ. वृ., पत्र 296 (ख) स्थानांग, स्थान 3 / 2154 6. उत्तरा. नियुक्ति, मा 81 से 92 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org