________________ पंचम अध्ययन : अकाममरणीय] अनात्मवादी नास्तिकों का मत-बालजीव किम विचारधारा से प्रेरित होकर हिंसादि कर्मों का आचरण धृष्ट और निःसंकोच होकर करते हैं ? इस तथ्य को इस अध्ययन की पांचवीं, छठी और सातवीं गाथाओं द्वारा व्यक्त किया गया है न मे दिट्ट परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई' इस पंक्ति के द्वारा पंचभूतवादी अनात्मवादी या तज्जीव-तच्छरीरवादी का मत बताया गया है, जो प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते हैं / 'हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया' इस पंक्ति के द्वारा भूत और भविष्य की उपेक्षा करके वर्तमान को ही सब कुछ मानने वाल अदूरदशी प्रयवादियों का मत व्यक्त किया गया है, जो केवल वर्तमान, कामभोगजन्य सुखों को ही सर्वस्व मानते हैं। तथा 'जणेण सद्धि होक्खामि' इस पंक्ति द्वारा गतानुगतिक विवेक मूढ़ बहिरात्माओं का मत व्यक्त किया गया है। इस तीन मिथ्यामतों के कारण ही बालजीव धृष्ट और निःसंकोच होकर हिंसादि पापकर्म करते हैं।' 'अट्टाए य अणट्ठाए' का अर्थ क्रमशः प्रयोजनवश एवं निष्प्रयोजन हिंसा है। उदाहरण--एक पशुपाल की आदत थी कि वह जंगल में वकरियों को एक वट वृक्ष के नीचे बिठा कर स्वयं सीधा सोकर बांस के गोफण से बेर की गुठलियाँ फेंक कर वृक्ष के पत्तों को छेदा करता था। एक दिन उसे एक राजपुत्र ने देखा और उसके पत्रच्छेदन-कौशल को देख कर उसे धन का प्रलोभन देकर कहा-मैं कहूँ, उसकी आँखे बींध दोगे?' उसने स्वीकार किया तो राजपुत्र उसे अपने साथ नगर में ले आया / अपने भाई--राजा को अाँखे फोड़ डालने के लिए उसने कहा तो उस पशुपाल ने तपाक से गोफन से उसकी आँखें फोड़ डाली / राजपुत्र ने प्रसन्न होकर उसकी इच्छानुसार उसे एक गाँव दे दिया। सढे--शठ—यों तो शठशब्द का अर्थ धूर्त, दुष्ट, मूढ़ या आलसी होता है, परन्तु बृहद्वृत्तिकार इसका अर्थ करते हैं—वेषादि परिवर्तन करके जो अपने को अन्य रूप में प्रकट करता है। यहाँ मण्डिकचोर के दृष्टान्त का निर्देश किया गया है।' दुहनो-दो प्रकार से, इसके अनेक विकल्प-(१) राग और द्वेष से, (2) बाह्य और आन्तरिक प्रवृत्तिरूप प्रकार से, (3) इहलोक और परलोक दोनों प्रकार के बन्धनों में (4) पुण्य और पाप दोनों के, (5) स्वयं करता हुआ और दूसरों को कराता हुग्रा, और (6) अन्तःकरण और वाणी दोनों से / मलं-पाठ प्रकार के कर्मरूपी मैल का।" सिसुणागुव-शिशुनाग कैचुना या अलसिया को कहते हैं / वह पेट में (भीतर) मिट्टी खाता 1. उत्तराध्ययनमूल, अ. 5 गा. 5-6-7 2. बृहद्वत्ति, पत्र 244-245 3. 'शठ:-तन्त्र पथ्यादिकरणतोऽन्यथाभूतमात्मानमन्यथा दर्शयति, मण्डिकचोरबत्'–बवत्ति, पत्र 244 4. वृहद्वत्ति, पत्र 244 5. वही, पत्र 244 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org