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________________ पंचमं अज्झयणं : अकाम-मरणिज्जं पंचम अध्ययन : अकाममरणीय मरण के दो प्रकारों का निरूपण 1. अण्णवंसि महोहंसि एगे तिण्णे दुरुत्तरे / तत्थ एगे महापन्ने इमं पट्टमुदाहरे / / [1] इस विशाल प्रवाह वाले दुस्तर संसार-सागर से कुछ लोग (गौतमादि) तिर गए। उनमें से एक महाप्राज्ञ (महावीर) ने यह स्पष्ट कहा था 2. सन्तिमे य दुवे ठाणा अक्खाया मारणन्तिया / अकाम-मरणं चेव सकाम-मरणं तहा // [2] मारणान्तिक (आयुष्य के अन्तरूप मरण-सम्बन्धी) ये दो स्थान (भेद या रूप) कहे गए हैं--(१) अकाम-मरण तथा (2) सकाम-मरण / 3. बालाणं अकामं तु मरणं असई भवे / पण्डियाणं सकामं तु उक्कोसेण सइं भवे / / [3] बाल (सद्-असद-विवेक-विकल) जीवों के अकाम-मरण तो बार-बार होते हैं। किन्तु पण्डितों (उत्कृष्ट चारित्रवानों) का सकाम मरण उत्कर्ष से (अर्थात् केवलज्ञानी की उत्कृष्ट भूमिका की दृष्टि से) एक बार होता है / विवेचन--मारणन्तिया--मरण रूप निज-निज आयुष्य का अन्त-मरणान्त, मरणान्त में होने वाले मारणान्तिक कहलाते हैं / अर्थात्-मरण-सम्बन्धी / ' प्रकाममरणं-जो व्यक्ति पंचेन्द्रिय विषयों का कामी (मूच्छित) होने के कारण मरने की (कामना) नहीं करता, किन्तु आयुष्य पूर्ण होने पर विवश होकर मरता है, उसका मरण अनिच्छा से विवशता की स्थिति में होता है, इसलिए अकाममरण कहलाता है। इसे बालमरण (अविरति का मरण) भी कहा जाता है। ___सकाममरणं-जो व्यक्ति विषयों के प्रति निरीह-निःस्पृह एवं अनासक्त होते हैं, इसलिए मृत्यु के प्रति असंत्रस्त, हैं, मृत्यु के समय घबराते नहीं, उनके लिए मृत्यु उत्सवरूप होती है, 1 ऐसे लोगों का मरण सकाममरण कहलाता है। इसे पण्डितमरण (विरत का मरण) भी कहा जाता है / जैसे वाचकवर्य उमास्वाति ने कहा है- “संचित तपस्या के धनी, नित्य व्रत-नियम-संयम में रत एवं निरपराध वृत्ति वाले चारित्रवान् पुरुषों के मरण को मैं उत्सवरूप मानता हूँ।" सकाम मरण का 1. बृहद्वृत्ति, पत्र 242 : मरणमेव अन्तो-निज-निजाऽऽयुषः पर्यन्तो मरणान्तः, तस्मिन् भवे मारणान्तिके / 2. 'ते हि विषयाभिष्वंगतो मरणमनिच्छन्त एव म्रियन्ते।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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