________________ 24] [उत्तराध्ययनसूत्र * समवायांगसूत्र में मरण के 17 भेद बताए हैं, जिनमें से भगवतीसूत्र में अंकित 12 भेद तो कहे जा चुके हैं। शेष पांच भेद ये हैं -प्रावीचि, अवधि, प्रात्यन्तिक, छद्मस्थ और केवलिमरण / ये यहाँ अप्रासंगिक हैं।' * प्रस्तुत अध्ययन में निरूपित बालमरण और पण्डितमरण में इन सबको गतार्थ करके, पण्डितमरण का ही प्रयत्न साधक को करना चाहिए, यही प्रेरणा यहाँ निहित है। 1. भगवती 2 / 1 / 90, पत्र 212, 213 (ख) समवायांग सम. 17 वृत्ति, पत्र 35 (ग) उत्त. नियुक्ति, गा. 225 (घ) विजयोदया वृ., पत्र 113, गोमट्टसार कर्मकाण्ड गा. 61 (ङ) मूलाराधना गा. 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org