________________ 60] [उत्तराध्ययनसूत्र 5. एवमावट्ट-जोणीसु पाणिणो कम्मकिब्बिसा। न निविज्जन्ति संसारे सवढेसु व खत्तिया // [5] जिस प्रकार क्षत्रिय लोग समस्त अर्थों (कामभोगों, सुखसाधनों एवं वैभव-ऐश्वर्य) का उपभोग करने पर भी निर्वेद (-विरक्ति) को प्राप्त नहीं होते, उसी प्रकार कर्मों से कलुषित जीव अनादिकाल से आवर्तस्वरूप योनिचक्र में भ्रमण करते हुए भी संसारदशा से निर्वेद नहीं पाते (-'जन्ममरण के भंवर-जाल से मुक्त होने की इच्छा नहीं करते।' 6. कम्म-संगेहि सम्मूढा दुक्खिया बहु-वेयणा / अमाणुसासु जोणीसु विणिहम्मन्ति पाणिणो॥ [6] कर्मों के संग से सम्मूढ़, दुःखित और अत्यन्त वेदना से युक्त जीव मनुष्येतर योनियों में पुनः पुनः विनिघात (त्रास) पाते हैं / 7. कम्माणं तु पहाणाए प्राणुपुवी कयाइ उ / ___जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययन्ति मणुस्सयं // [7] कालक्रम से कदाचित् (मनुष्यगति-निरोधक क्लिष्ट) कर्मों का क्षय हो जाने से जीव तदनुरूप (आत्म-) शुद्धि को प्राप्त करते हैं, तदनन्तर वे मनुष्यता प्राप्त करते हैं। विवेचन-मनुष्यत्वप्राप्ति में बाधक कारण-(१) एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक नाना गोत्र वाली जातियों में जन्म, (2) देवलोक, नरकभूमि एवं प्रासुरकाय में जन्म, (3) तिर्यञ्चगतिद्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय में जन्म, (4) क्षत्रिय (राजा आदि) की तरह भोगसाधनों को प्रचुरता के कारण संसारदशा से अविरक्ति, (5) मनुष्येतर योनियों में सम्मूढता एवं वेदना के कारण मनुष्यत्वप्राप्ति का अभाव, (6) मनुष्यगतिनिरोधक कर्मों का क्षय होने पर भी तदनुरूप आत्मशुद्धि का अभाव / ' मनुष्यत्व दुर्लभता के विषय में दस दृष्टान्त- (1) चोल्लक अर्थात्-भोजन। ब्रह्मदत्त राजा ने चक्रवर्ती पद मिलने पर एक ब्राह्मण पर प्रसन्न हो कर उसकी याचना एवं इच्छानुसार चक्री के षट्खण्डपरिमित राज्य में प्रतिदिन एक घर से खीर का भोजन मिल जाने की मांग स्वीकार की। अतः सबसे प्रथम दिन उसने चक्रवर्ती के यहाँ बनी हुई परम स्वादिष्ट खीर खाई। परन्तु जैसे उस ब्राह्मण को चक्रवर्ती के घर की खीर खाने का अवसर जिंदगी में दूसरी बार मिलना दुर्लभ है, वैसे ही इस जीव को मनुष्यजन्म पुन: मिलना दुर्लभ है। (2) पाशक---जुना खेलने का पासा / चाणक्य की आराधना से प्रसन्न देव द्वारा प्रदत्त पासों के प्रभाव से उस का पराजित होना दुर्लभ बना, उसी प्रकार यह मनुष्यजन्म दुर्लभ है। (3) धान्य समस्त भारत क्षेत्र के सभी प्रकार के धान्यों (अनाजों) का गगनचुम्बी ढेर लगा कर उसमें एक प्रस्थ सरसों मिला देने पर उसके ढेर में से पुन: प्रस्थप्रमाण सरसों के दाने अलय-अलग करना बड़ा दुर्लभ है, वैसे ही जीव का मनुष्यभव से छूट कर चौरासी लक्ष योनि में मिल जाने पर पुनः मनुष्यजन्म मिलना अतिदुर्लभ है / (4) द्यूत-रत्नपुरनप रिपुमर्दन ने अपने पुत्र बसुमित्र को राजा के जीवित रहते राज्य प्राप्त करने की रीति बता दी कि 1008 1. उत्तराध्ययन, मूल अ. 3, गा, 2 से 7 तक / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org