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________________ तृतीय अध्ययन : चतुरंगीय ] [61 खम्भे तथा प्रत्येक खम्भे के 1008 कोनों वाले सभाभवन के प्रत्येक कोने को जुए में (एक बार दाव से) जीत ले, तभी उस द्यूतक्रीड़ाविजयी राजकुमार को राज्य मिल सकता है। राजकुमार ने ऐसा ही किया, किन्तु द्यूत में प्रत्येक कोने को जीतना उसके लिए दुर्लभ हुआ, वैसे ही मनुष्यभव प्राप्त होना दुर्लभ है। (5) रत्न-धनद नामक कृपण वणिक किसी सम्बन्धी के आमन्त्रण पर अपने पुत्र वसुप्रिय को जमीन में गाड़े हुए रत्नों की रक्षा के लिए नियुक्त करके परदेश चला गया। वापिस श्रा कर देखा तो रत्न वहाँ नहीं मिले, क्योंकि उसके चारों पुत्रों ने रत्न निकाल कर बेच दिये थे और उनसे प्राप्त धनराशि से व्यापार करके कोटिध्वज बन गये थे / वृद्ध पिता के द्वारा वापिस रत्न नहीं मिलने पर घर से निकाल दिये जाने की धमकी देने पर चारों पुत्रों ने विक्रीत रत्नों का वापस मिलना दुर्लभ बताया, वैसे ही एक बार हाथ से निकला हुआ मनुष्यभव पुनः मिलना दुर्लभ है / (6) स्वप्न-मूलदेव नामक क्षत्रिय को परदेश जाते हुए एक कार्पटिक मिला। मार्ग में कांचनपुर के बाहर तालाब पर दोनों सोए। पिछली रात को दोनों ने मुख में चन्द्रप्रवेश का स्वप्न देखा। मूलदेव ने कार्पटिक से स्वप्न को गोपनीय रखने को कहा, पर वह प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वप्न का वृत्तान्त कहता फिरा। किसी ने उससे कहा--"आज शनिवार है, इसलिए तुम्हें घृत-गुड़ सहित रोटी एवं तेल मिलेंगे।" यही हुआ / उधर मूलदेव ने एक स्वप्नपाठक ब्राह्मण से स्वप्नफल जानना चाहा, तो अपनी पुत्री के साथ विवाह करने की शर्त पर स्वप्नफल बताने को कहा। मूलदेव ने ब्राह्मणपुत्री के साथ विवाह करना स्वीकार किया। दामाद बन गया तो विप्र ने कहा--"अाज से सातवें दिन आप इस नगर के राजा बनेंगे / " यही हया / मुलदेव को राजा बने देख उक्त कार्पटिक को अत्यन्त पश्चात्ताप हुा / वह राज्यलक्ष्मी के हेतु चन्द्रपान के स्वप्न के लिए पुनः पुनः उसी स्थान पर सोने लगा, किन्तु अब उस कार्पटिक को चन्द्रपान का स्वप्न पाना अति दुर्लभ था, वैसे ही एक बार मनुष्यजन्म चूकने पर पुन: मनुष्यजन्म की प्राप्ति अतिदुर्लभ है। (7) चक्र—मथुरा नरेश जितशत्रु ने अपनी पुत्री इन्दिरा के विवाह के लिए स्वयंवरमण्डप बनवाया, उसके निकट बड़ा खम्भा गड़वाया, जिसके ऊर्श्वभाग में, घूमने वाले 4 चक्र उलटे और चार सीधे लगवाए। उन चक्रों पर राधा नामक घूमती हुई पुतली रखवा दी। खंभे के ठीक नीचे तेल से भरा हुआ एक कड़ाह रखवाया / शर्त यह रखी कि जो व्यक्ति राधा के वामनेत्र को बाण से बीध देगा, उसे ही मेरी पुत्री वरण करेगी। स्वयंवर में समागत राजकुमारों ने बारी-बारी से निशाना साधा, मगर किसी का एक चक्र से और किसी का दूसरे से टकरा कर बाण गिर गया। अन्त में जयन्त राजकुमार ने बाण से पुतली के वामनेत्र की कनीनिका को बींध दिया / राजपुत्री इन्दिरा ने उसके गले में वरमाला डाल दी। जैसे राधावेध का साधना दुष्कर कार्य है, उसी प्रकार मनुष्य जन्म को हारे हुए प्रमादी को पुन: मनुष्यजन्मप्राप्ति दुर्लभ है / (8) कूर्म-कछुआ / शैवालाच्छादित सरोवर में एक कछुआ सपरिवार रहता था / एक बार किसी कारण वश शैवाल हट जाने से एक छिद्र हो गया। कछुए ने अपनी गर्दन बाहर निकाली तो स्वच्छ आकाश में शरत्कालीन पूर्ण चन्द्रविम्ब देखा। पाश्चर्यपूर्वक आनन्दमग्न हो, वह इस अपूर्व वस्तु को दिखाने के लिए अपने परिवार को लेकर जब उस स्थल पर आया, तो वह छिद्र हवा के झोंके से पुनः शैवाल से आच्छादित हो चुका था / अतः उस अभागे कछुए को जैसे पुनः चन्द्रदर्शन दुर्लभ हुआ, वैसे ही प्रमादी जीव को पुनः मनुष्यजन्म मिलना महादुर्लभ है। (6) युग-असंख्यात द्वीपों और समुद्रों के बाद असंख्यात योजन विस्तृत एवं सहस्र योजन गहरे अन्तिम समुद्र-स्वयंभूरमण में कोई देव पूर्व दिशा की ओर गाड़ी का एक जुना डाल दे तथा पश्चिम दिशा की ओर उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003498
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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