________________ 22] [उत्तराध्ययनसूत्र चूर्णिकार और शान्त्याचार्य द्वारा संवृत (सर्वेन्द्रियगुप्त---संयत) या साधु का विशेषण भी माना गया है / ' समयं दो अर्थ हैं-(१) साथ में और (2) समतापूर्वक / यह शब्द गच्छ-वासी साधुनों की समाचारी का द्योतक है / 'भुजे' क्रिया के साथ इसका प्राशय यह है कि मडण्लोभोजी साधु अपने सहधर्मी साधुओं को निमंत्रित करके उनके साथ आहार करे, अकेले न करे / चूणि में इस अर्थ के अतिरिक्त यह भी बताया है कि यदि अकेला भोजन करे तो समभावपूर्वक करे / विनीत और अविनीत शिष्य के स्वभाव एवं आचरण से गुरु प्रसन्न और अप्रसन्न 37. रमए पण्डिए सासं हयं भदं व वाहए। बालं सम्मइ सासन्तो गलियस्सं व वाहए / / [37.] मेधावी (पण्डित-विनीत) शिष्य पर अनुशासन करता हुआ गुरु वैसा ही प्रसन्न होता है, जैसे कि वाहक (अश्वशिक्षक) उत्तम अश्व को हांकता हुआ प्रसन्न रहता है। जैसे दुष्ट घोड़े को हांकता हुआ उसका वाहक खिन्न होता है, वैसे ही अबोध (अविनीत, बाल) शिष्य पर अनुशासन करता हुआ गुरु खिन्न होता है। 38. 'खड्ड्या मे चवेडा मे अक्कोसा य वहा य मे / ' कल्लाणमणुसासन्तो पावदिछि ति मन्नई / 38.] गुरु के कल्याणकारी अनुशासन को पापदृष्टि वाला शिष्य ठोकर और चांटा मारने, गाली देने और प्रहार करने के समान कष्टकारक समझता है। 39. 'पुत्तो मे भाय नाई' ति साहू कल्लाण मन्नई। पावदिट्ठी उ अप्पाणं सासं 'दासं व' मन्नई // [36.] गुरु मुझे पुत्र, भाई और स्व (ज्ञाति) जन की तरह आत्मीय समझ कर शिक्षा देते हैं, ऐसा विचार कर विनीत शिष्य उनके अनुशासन को कल्याणकारी मानता है, किन्तु पापदृष्टि वाला कुशिष्य (हितानुशासन से) शासित होने पर भी अपने को दास के समान मानता है / 40. न कोषए पायरियं, अप्पाणं पि न कोवए। बुद्धोवघाई न सिया, न सिया तोत्तगवेसए / [40.] शिष्य को चाहिए कि वह न तो प्राचार्य को कुपित करे और न (उनके कठोर अनुशासनादि से) स्वयं कुपित हो / प्राचार्य (प्रबुद्ध गुरु) का उपघात करने वाला न हो और न (गुरु को खरी-खोटी सुनाने की ताक में उनका) छिद्रान्वेषी हो। 1. (क) सुखबोधा, पत्र 12 (ख) 'संवुडो नाम सदियमुत्तो' संवृतो वा सकलाश्रवविरमणात् / (ग) संवृते-पार्श्वतः कटकुड्यादिना संकटद्वारे, अटव्यां कङगादिषु'---बृहद्वृत्ति, पत्र 6-61 2. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र 61 (ख) सुखबोधा, पत्र 12 (ग) उत्तरा. चूर्णि, पृ. 40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org