________________ उनतीसवाँ अध्ययन : सम्यक्त्वपराक्रम " . . . अध्ययन-सार सम्यक्त्वपराक्रम से निर्वाणप्राप्ति मंबेग का फल निर्वेद से लाभ धर्मश्रद्धा का फल गुरु-साधमिक-शुश्र षा का फल बालोचना से उपलब्धि (प्रात्म) निन्दना से लाभ गर्हणा से लाभ सामायिकादि बडावश्यक से लाभ स्तक-स्तुतिमंगल से लाभ काल-प्रतिलखना से उपलब्धि प्रायश्चित्तकरण में लाभ क्षमापणा से लाभ स्वाध्याय एवं उसके अंगों से लाभ एकाग्र मन की उपलब्धि संयम, तप और व्यवदान के फल सुखशात का परिणाम अप्रतिबद्धता से लाभ विविक्त शय्यासन से लाभ विनिवर्तना-लाभ प्रत्याख्यान की नबसूत्री प्रतिरूपता का परिणाम वैयावत्य से लाभ मर्वगुणसम्पन्नता से लाभ वीतरागता का परिणाम शान्ति, मूक्ति, प्रार्जव एवं मार्दव से उपलब्धि भाब-करण-योगसत्य का परिणाम गुप्ति की माधना का परिणाम मन-वचन-कायसमाधारणता का परिणाम जान-दर्शन-चारित्रमम्पन्नता का परिणाम पाँचों इन्द्रियों के निग्रह का परिणाम कपायविजय एवं प्रेय-प-मिथ्यादर्शन विजय का परिणाम more.YN 502 503 0 0 0 KM 515 517 519 [106 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org