________________ 213 294 094 295 295 xx 300 301 302 हरिषेण चक्रवर्ती जय चक्रवर्ती ने मोक्ष प्राप्त किया दशार्णभद्र राजा का निष्क्रमण नमि राजर्षि की धर्म में सुस्थिरता चार प्रत्येकबुद्ध जिनशासन में प्रव्रजित हुए मौवीरनए उदायन काशीराज द्वारा कर्मक्षय विजय राजा राज्य त्याग कर प्रव्रजित महाबल राजर्षि ने मिद्धिपद प्राप्त किया क्षत्रिय मुनि द्वारा मिद्धान्तसम्मत उपदेश उन्नीसवाँ अध्ययन : मृगापुत्रीय अध्ययन-सार मृगापुत्र का परिचय मुनि को देख कर मृगापुत्र को पूर्वजन्म का स्मरण विरक्त मृगापुत्र द्वारा दीक्षा की अनुज्ञा-याचना म गापुत्र की वैराग्यमूलक उक्तियाँ माता-पिता द्वारा श्रमणधर्म की कठोरता बताकर उससे विमुख करने मृगापुत्र द्वारा नरक के अनन्त दुःखों के अनुभव का निरूपण माता-पिता द्वारा अनुमति, किन्तु चिकित्सा-समस्या प्रस्तुत मगापुत्र द्वारा मगचर्या से निष्प्रतिकर्मता का समर्थन संयम की अनुमति और मृगचर्या का संकल्प मृगापुत्र श्रमण निर्ग्रन्थ रूप में महर्षि मृगापुत्र अनुत्तर सिद्धिप्राप्त महर्षि मगापुत्र के चारित्र से प्रेरणा वीसवाँ अध्ययन : महानिर्गन्थीय उपाय 324 324 WWW.0 0 0G x र 329 marrr ~ mr r m r अध्ययन-सार अध्ययन का प्रारम्भ मुनिदर्शनानन्तर श्रेणिक राजा की जिज्ञासा मुनि और राजा के मनाथ-अनाथ सम्बन्धी प्रश्नोत्तर मुनि द्वारा अपनी अनाथता का प्रतिपादन अनाथता से सनाथताप्राप्ति की कथा अन्य प्रकार की अनाथता महानिर्ग्रन्थपथ पर चलने का निर्देश और उसका महाफल संतुष्ट एवं प्रभावित श्रेणिक राजा द्वारा मोहमागानादि 349 [ 102] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org