________________ 354 3 5 356 262 365 इक्कीसवाँ अध्ययन : समुद्रपालोय अध्ययन-सार पालित श्रावक और पिहण्ड नगर में व्यापार निमित्त निवास पिहुण्ड नगर में विवाह, समुद्रपाल का जन्म समुद्रपाल का संवर्द्धन, शिक्षण एवं पाणिग्रहण समुद्रपाल को विरक्ति और दीक्षा महर्षि समुद्रपाल द्वारा प्रात्मा को स्वयं स्फुरित मुनिधर्म शिक्षा उपसंहार बाईसवाँ अध्ययन : रथनेमीय अध्ययन-सार तीर्थकर अरिष्टनेमि का परिचय राजीमती के साथ वाग्दान, बरात के साथ प्रस्थान अवरुद्ध प्रात पशु-पक्षियों को देखकर करुणामग्न अरिष्टनेमि अरिष्टनेमि द्वारा प्रत्रज्याग्रहण प्रथम शोकमग्न और तत्पश्चात प्रत्रजित राजीमती राजीमती द्वारा भग्नचित्त रथनेमि का संयम में स्थिरीकरण रथनेमि पुनः संयम में हड़ उपसंहार तेईसवाँ अध्ययन : केशी-गौतमीय अध्ययन-सारं पार्श्व जिन और उनके शिष्य केशी श्रमण : संक्षिप्त परिचय भगवान महावीर और उनके शिष्य गौतम : संक्षिप्त परिचय दोनों शिष्यसंघों में धर्मविषयक अन्तर सम्बन्धी शंकाएँ दोनों का मिलन : क्यों और कैसे ? प्रथम प्रश्नोत्तर : चातुर्यामधर्म और पंचमहावतधर्म में अन्तर का कारण द्वितीय प्रश्नोत्तर : अंचलक और विशिष्टचेलक धर्म के अन्तर का कारण तृतीय प्रश्नात्तर : शत्रयो पर विजय के सम्बन्ध में। चतुर्थ प्रश्नोत्तर : पाशबन्धों को तोड़ने के सम्बन्ध में पंचम प्रश्नोत्तर : तृष्णारूपी लता को उखाड़ने के सम्बन्ध में छठा प्रश्नोतर : कषायाग्नि बुझाने के सम्बन्ध में सातवाँ प्रश्नोतर : मनोनिग्रह के सम्बन्ध में आठवाँ प्रश्नोत्तर : कुपथ-सत्पथ के विषय में नौवाँ प्रश्नोत्तर : धर्मरूपी महाद्वीप के सम्बन्ध में दसा प्रश्नोत्तर : महासमुद्र को नौका से पार करने के सम्बन्ध में 372 374 379 379 mmmmm 15 Sissis 390 . 392 393 395 m G m m ar : : [ 103 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org