________________ प्रथम अध्ययन : सामायिक] [17 सुठुदिण्णं, दुठ्ठ पडिच्छियं, अकाले कओ सभाओ, काले न को सज्झानो, असज्झाए सज्भाइयं, सज्झाए न सज्झाइयं,' तस्स मिच्छा मि दुक्कडं // भावार्थ--पागम तीन प्रकार का है . . 1. सुत्तागम, 1. अत्थागम, 3. तदुभयागम / ___जिसमें अक्षर थोड़े पर अर्थ सर्वव्यापक, सारगर्भित, सन्देहरहित, निर्दोष तथा विस्तृत हो उसे विद्वान् लोग 'सूत्र' कहते हैं / सूत्र रूप आगम 'सूत्रागम' कहलाता है तथा जो मुमुक्षुत्रों से प्राथित हो उसे 'अर्थागम' कहते हैं / केवल सूत्रागम से प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता, इसलिये सूत्र और अर्थ रूप तदुभयागम' कहा है। इस अागम का पाठ करने में जो अतिचार-दोष लगा हो, उसका फल मिथ्या हो / वे अतिचार इस प्रकार हैं--- 1. सूत्र के अक्षर उलट-पलट पढ़े हों। 2. एक ही शास्त्र में अलग-अलग स्थानों पर पाये हुए समान अर्थ वाले पाठों को एक स्थान पर लाकर पढ़ा हो अथवा अस्थान में विराम लिया हो या अपनी बुद्धि से सूत्र बनाकर सूत्र में डालकर पढ़े हों। 3. हीन अक्षर युक्त अर्थात् कोई अक्षर कम करके पढ़ा हो। 4. अधिक अक्षर युक्त पढ़ा हो / 5. पदहीन पढ़ा हो, 6. विनयरहित पढ़ा हो, 7. योगहीन (मन की एकाग्रता से रहित) पढ़ा हो / अथवा जिस शास्त्र के अध्ययन के लिए जो आयंबिल आदि करने रूप योगोद्वहन-तपश्चरण विहित है, उसे न करके पढ़ा हो। 8. उदात्त आदि स्वरों से रहित पढ़ा हो / अथवा पात्र-अपात्र का विवेक किए बिना पढ़ाया हो। 9. 'सुट्ठदिण्णं'-शिष्य में शास्त्र ग्रहण करने की जितनी शक्ति हो उससे अधिक पढ़ाया हो। 10. आगम को दुष्ट भाव से ग्रहण किया हो। 11. जिन सूत्रों के पठन का जो काल शास्त्र में कहा है, उससे भिन्न दूसरे काल में उन सूत्रों का स्वाध्याय किया हो। 1. भणतां गुणतां विचारता ज्ञान और ज्ञानवंत की अाशातना की हो तो 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / ' 2. स्वर के तीन भेद हैं--उदात्त, अनुदात्त, स्वरित / 'उच्चरुपलभ्यमान उदात्तः, नीचैरनुदात्तः, समवृत्या स्वरितः', अर्थात तीव्र उच्चारण पूर्वक बोलना उदात्त, धीमे बोलना अनुदात्त तथा मध्यमरूप से बोलना स्वरित कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org