________________ 10] [आवश्यकसूत्र पुष्प में सुगन्ध न हो, अग्नि में उष्णता न हो, जल में शीतलता न हो, अथवा मिसरी में मिठास न हो तो उनका क्या स्वरूप रहेगा? कुछ भी नहीं / ठीक यही दशा धर्महीन मानव की है। कहा भी है-"धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः" अर्थात् धर्महीन मानव और पशु में कोई अन्तर नहीं—दोनों समान हैं / धर्म की साधना शुभ की साधना है। साधना दो प्रकार की है—१. नीति की साधना, और 2. धर्म की साधना / नीति की साधना, पुण्य की साधना है। यह साधना केवल नैतिकता तक ले जा सकती है और धर्म-प्रासाद की नींव का काम करती है। धर्म की साधना मुक्ति तक ले जाती है। शरण-सूत्र चत्तारि सरणं पवज्जामि, अरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्ध सरणं पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवलि-पण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि / भावार्थ—मैं चार की शरण स्वीकार करता हूँ - 1. अरिहंतों की शरण स्वीकार करता हूँ। 2. सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूँ। 3. साधुओं की शरण स्वीकार करता हूँ। 4. सर्वज्ञप्ररूपित धर्म की शरण स्वीकार करता हूँ। विवेचन–विश्व का कोई भी भौतिक पदार्थ मानव को वास्तविक रूप में शरण नहीं दे सकता है / चाहे माता हो, पिता हो, पुत्र हो, पत्नी हो, धन वैभव हो अथवा अन्य कोई स्वजनपरिजन हो / किन्तु इस तथ्य को न जानकर अज्ञानी मानव दुनिया के नश्वर पदार्थों को ही शरण समझता है। वास्तविकता यह है कि विश्व मेंसिवाय अरिहंत, सिद्ध, साधु और सर्वज्ञप्ररूपित धर्म के अतिरिक्त अन्य कोई शरणदाता नहीं है / जितने भी अतीत एवं वर्तमान में दुष्ट जन शिष्ट बने हैं, वे चार शरण स्वीकार करने पर ही बने हैं / मनुष्य धर्म की शरण में आना चाहता है / धर्म में शरण देने की क्षमता है / "धम्मो दीवो पइट्टा " अर्थात् धर्म एक दीप है-प्रकाशपुज है, एक प्रतिष्ठा है—एक आधार है, एक गति है / शरण देने वाले और भी अनेक हो सकते हैं किन्तु वही उत्तम शरण है जो हमें त्राण देता है। संकटों से उबारता है, भय से विमुक्त करके निर्भय बनाता है / संसार का कौन-सा पदार्थ है जो हमें सदा के लिए मृत्यु के भय से बचा सके ? पाप-कर्मों के अनिष्ट विपाक से हमारी रक्षा कर सके ? यह शक्ति सूत्रोक्त चार की शरण ग्रहण में ही है / अतएव यही चार पारमार्थिक दृष्टि से शरण-भूत हैं। प्रतिक्रमण-सूत्र इच्छामि ठामि काउस्सगं जो मे देवसिमो अइयारो को काइयो, वाइप्रो, माणसिनो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org