________________ [9 प्रथम अध्ययन : सामायिक] आदि लौकिक मंगल माने गए हैं। सूत्रोक्त अरिहन्त आदि लोकोत्तर मंगल हैं। लौकिक मंगल एकान्त और आत्यन्तिक मंगल नहीं होते / अत: अध्यात्मनिष्ठ प्रात्मार्थी महापुरुषों ने लौकिक मंगल से पृथक् अलौकिक मंगल की शोध की है। अलौकिक मंगल कभी अमंगल नहीं होता है। सांसारिक उलझनों से भरे लौकिक मंगल से आज दिन तक न तो किसी ने स्थायी शान्ति प्राप्त की है और न भविष्य में ही कोई कर पाएगा। स्थायी प्रानन्द जब तक न मिले, तब तक वह मंगल कैसा? अतः अलौकिक मंगल ही वास्तविक मंगल है। प्रस्तुत चार मंगलों में प्रथम दो मंगल आदर्श रूप हैं / हमारे जीवन का अन्तिम लक्ष्य क्रमशः अरिहंत और अन्त में सिद्ध पद की प्राप्ति करना ही है। अरिहन्त और सिद्ध पूर्ण आत्मविशुद्धि अर्थात् सिद्धता के आदर्श होने से आदर्श मंगल हैं, जबकि साधु साधकता के आदर्श मंगल हैं। साधु पद में प्राचार्य और उपाध्याय भी समाहित हो जाते हैं / सबसे अन्त में धर्म-मंगल पाता है / इसी के प्रभाव से या धर्म के फलस्वरूप ही पूर्ववर्ती अन्य पदों की प्रतिष्ठा है। धर्म की शक्ति सर्वोपरि है / उत्तम-चतुष्टय चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि-पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। भावार्थ -- संसार में चार उत्तम अर्थात् सर्वश्रेष्ठ हैं१. अरिहत भगवान् लोक में उत्तम हैं / 2. सिद्ध भगवान् लोक में उत्तम हैं। 3. साधु महाराज लोक में उत्तम हैं। 4. सर्वज्ञप्ररूपित धर्म लोक में उत्तम है। विवेचन-आगमकारों ने कहा है कि उत्तम चार हैं। अनंत काल से भटकती हुई भव्य आत्माओं को उत्थान के पथ पर ले जाने वाले अरिहन्त, सिद्ध, साधु और धर्म ये चार ही उत्तम हैं तथा जो उत्तम होता है, वही मंगल होता है। यह बात विश्व-विख्यात है कि आज संसार का प्रत्येक प्रबुद्ध प्राणी उत्तम की शोध में लगा हुआ है, चाहे वह सामाजिक क्षेत्र हो, राजनैतिक क्षेत्र हो अथवा आध्यात्मिक क्षेत्र हो / चार उत्तमों में अरिहंत और सिद्ध परमात्मा के रूप में उत्तम हैं। कर्ममल के दूर हो जाने के बाद आत्मा का शुद्ध ज्योति रूप हो जाना ही परमात्मत्व है। साधु पद में प्राचार्य, उपाध्याय और मुनि, महात्मा के रूप में उतम हैं। आत्मा से महात्मा और महात्मा से परमात्मा बनने के लिये धर्म ही एक मात्र उत्तम एवं उत्कृष्ट साधन है। कहा भी है-'धारणाद् धर्मः' अर्थात् दुर्गति में गिरती हुई आत्माओं को जो धारण करता है, बचाता है, वही उत्तम धर्म है। आगमकार ने इसी सिद्धान्त पर प्रकाश डाला है कि धर्म सब मंगलों का मूल है। यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org