________________ आधुनिक युग मुद्रण का युग है। इस युग में विराट् साहित्य मुद्रित होकर जनता-जनार्दन के कर-कमलों में पहचा है / आगमों के प्रकाशन का कार्य विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय-समय पर हुमा है / आवश्यकसूत्र और उसका व्याख्यासाहित्य इस प्रकार प्रकाशित हुआ है सन 1928 में पागमोदय समिति बम्बई ने प्रावश्यकसूत्र भद्रबाहनियुक्ति और मलयगिरि वत्ति के साथ प्रथम भाग प्रकाशित किया। उसका द्वितीय भाग सन् 1932 में तथा तृतीय भाग सन् 1936 में देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार सूरत से प्रकाशित हुए / सन् 1916-17 में आवश्यक भद्रबाहनियुक्ति हारिभद्रीया वत्ति के साथ आगमोदय समिति बम्बई से प्रकाशित हुई। सन् 1920 में प्रावश्यकसूत्र मलधारी हेमचन्द्र विहित प्रदेशव्याख्या के साथ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार बम्बई ने प्रकाशित किया। सन् 1939 और 1941 में भद्रबाहुकृत प्रावश्यकनियुक्ति की माणिक्यशेखर विरचित दीपिका विजयदान सूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला, सूरत से प्रकाशित हुई। सन् 1928 और सन् 1929 में आवश्यकचणि जिनदासरचित क्रमशः पूर्व भाग और उत्तर भाग प्रकाशित हुआ है। वीर संवत् 2427 से 2441 में विशेषावश्यकभाष्य शिष्यहिताख्य बहवृत्ति, मलधारी प्राचार्य हेमचन्द्र की टीका सहित, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला बनारस से प्रकाशित हुआ / सन् 1923 में 'विशेषावश्यकगाथानामकारादिक्रमः तथा विशेषावश्यकविषयाणामनुक्रमः प्रागमोदय समिति बम्बई से प्रकाशित हुए / सन् 1966 में विशेषावश्यकभाष्य स्वोपज्ञवृत्ति सहित लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर से तीन भागों में प्रकाशित हया है। सन 1936 और 1937 में कोट्याचार्य कृत विशेषावश्यकभाष्य विवरण का प्रकाशन ऋषभदेवजी केसरीमलजी प्रचारक संस्था रतलाम से हुअा। सन् 1936 में ही प्रावश्यक नमिसार वृत्ति विजयदान सूरीश्वर ग्रन्थमाला बम्बई से प्रकाशित हुई। सन् 1958 में पूज्य घासीलालजी महाराजकृत प्रावश्यकसूत्र संस्कृत व्याख्या हिन्दी व गुजराती अनुवाद से साथ जैनशास्त्रोद्धार समिति राजकोट ने प्रकाशित किया। सन् 1906 में आवश्यकसूत्र गुजराती अनुवाद के साथ भीमसी माणेक बम्बई ने और सन् 1924 से 27 तक प्राममोदय समिति बम्बई ने गुजराती अनुवाद प्रकाशित कर अपनी साहित्यिक रुचि का परिचय दिया। वीर संवत 2446 में प्राचार्य अमोलकऋषिजी ने 32 अागमों का जो हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया, उस लड़ी की कड़ी में आवश्यकसूत्र भी प्रकाशित हुआ। पावश्यकसूत्र का मूल पाठ भी अनेक स्थलों से प्रकाशित हुअा है / गुडगांव छावनी से सन् 1954 में मुनि फूलचन्दजी 'पुष्फभिक्खु' ने सुत्तागमे का प्रकाशन करवाया, उस में तथा सैलाना से सन् 1984 में प्रकाशित 'अंमपबिट्ठसुत्ताणि' में मूल पाठ प्रकाशित हुआ है। आगमप्रभावक मुनि पुण्यविजयजी महाराज ने जैन आगम ग्रन्थमाला के अन्तर्गत इस्वी सन 1977 में श्री महावीर जैन विद्यालय बम्बई से 'दसवेयालियसुत्तं उत्तरज्झयणाई मावस्सयसुत्तं' शीर्षक से प्रकाशित हुअा है। यह अनेक ग्रन्थों के टिप्पण, सूत्रानुक्रम, शब्दानुक्रम, विशेषनामानुक्रम आदि अनेक परिशिष्टों के साथ प्रकाशित है / शोधार्थियों के लिये बहुत ही उपयोगी है। [ 62] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org