________________ गम्भीर ज्ञाता थे तो गणितशास्त्र, दर्शनशास्त्र और कर्म सिद्धान्त में भी निष्णात थे। उन्होंने अनेक प्रागमों पर टीकाएं लिखीं। आवश्यकसूत्र पर भी उन्होंने आवश्यकविवरण नामक वृत्ति लिखी है। यह विवरण मूल सूत्र पर न होकर आवश्यकनियुक्ति पर है। यह विवरण अपूर्ण ही प्राप्त हुआ है। इसमें मंगल आदि पर विस्तार से विवेचन और उसकी उपयोगिता पर चिन्तन किया गया है। निर्यक्ति की गाथाओं पर सरल और सुबोध शैली में विवेचन किया है। विवेचन की विशिष्टता यह है-प्राचार्य ने विशेषावश्यकभाष्य की गाथाओं पर स्वतन्त्र विवेचन न. कर उनका सार अपनी वत्ति में उकित कर दिया है / वृत्ति में जितनी भी गाथाएं आई हैं, वे वृत्ति के वक्तव्य को पुष्ट करती हैं। वृत्ति में विशेषावश्यकभाष्य की स्वपज्ञवृत्ति का भी उल्लेख हुआ है साथ ही प्रज्ञाकरमुप्त आवश्यक चूर्णिकार, आवश्यक मूल टीकाकार, आवश्यक मूल भाष्यकार, लघीयस्त्रयालंकार, अकलङ्क-न्यायावतार वत्तिकार प्रभति का भी उल्लेख हुआ है। यत्र-तत्र विषय को स्पष्ट करने के लिए कथाएं भी उद्धत की गई हैं। कथानों की भाषा प्राकृत है। वर्तमान में जो विवरण उपलब्ध है उसमें चतुर्विशतिस्तव नामक द्वितीय अध्ययन के 'थभं रयणविचित्तं कथं सुमिणम्मि तेण कुंथुजिणो' के विवेचन तक प्राप्त होता है। उसके पश्चात् भगवान् अरनाथ के उल्लेख के बाद का विवरण नहीं मिलता है। यह जो विवरण है वह चतुर्विशतिस्तव नामक द्वितीय अध्ययन तक है और वह भी अपूर्ण है / जो विवरण उपलब्ध है उसका ग्रन्थमान 18000 श्लोक प्रमाण है। ___ मलधारी आचार्य हेमचन्द्र महान् प्रतिभासम्पन्न और प्रागमों के ज्ञाता थे। वे प्रवचनपट और वाग्मी थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया। प्रावश्यकवत्ति प्रदेशव्याख्या प्राचार्य हरिभद्र की वृत्ति पर लिखी गई है, इसलिए उसका अपर नाम हारिभद्रीयावश्यक वृत्तिटिप्पणक है। मलधारी प्राचार्य हेमचन्द्र के शिष्य ने प्रदेशव्याख्याटिप्पण भी लिखा है। प्राचार्य मलधारी हेमचन्द्र की विशेषावश्यकभाष्य पर दूसरी वृत्ति शिष्यहिता है। यह बहत्तम कृति है। प्राचार्य ने भाष्य में जितने भी विषय आये हैं, उन सभी विषयों को बहुत ही सरल और सुगम दृष्टि से समझाने का प्रयास किया है। दार्शनिक चर्चाओं का प्राधान्य होने पर भी शैली में काठिन्य नहीं है। यह इसकी महान् विशेषता है। संस्कृत कथानकों से विषय में सरसता ब सरलता प्रा गई है। यदि यह कह दिया जाये कि प्रस्तुत टीका के कारण विशेषावश्यकभाष्य के पठन-पाठन में सरलता हो गई तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अन्य अनेक मनीषियों ने भी आवश्यक सूत्र पर वृत्तियां लिखी हैं। संक्षेप में उनका विवरण इस प्रकार है-जिनभट्ट, माणिक्यशेखर, कुलप्रभ, राजवल्लभ आदि ने आवश्यकसूत्र पर वृत्तियों का निर्माण किया है। इनके अतिरिक्त विक्रम संवत् 1122 में नमि साधु ने, संवत् 1222 में श्री चन्द्रसूरि ने, संवत् 1440 में श्री ज्ञानसागर ने, संवत् 1500 में धीर सून्दर ने, संवत 1540 में शुभवर्तनगिरि ने, संवत 1697 में हितरुचि ने तथा सन् 1958 में पूज्य घासीलालजी महाराज ने भी आवश्यकसूत्र पर वृत्ति का निर्माण कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है / टीका युग समाप्त होने के पश्चात् जनसाधारण के लिये आगमों के शब्दार्थ करने वाली संक्षिप्त टीकाएं बनाई गई जो स्तवक या टब्बा के नाम से विश्रुत हैं। और वे लोकभाषाओं में सरल और सुबोध शैली में लिखी गई। धर्मसिंह मुनि ने 18 वीं शताब्दी में 27 आगमों पर बालावबोध टब्वे लिखे थे। उनके टब्वे मूलस्पर्शी अर्थ को स्पष्ट करने वाले हैं। उन्होंने आवश्यक पर भी टब्बा लिखा था। टब्वों के पश्चात् अनुवाद युग का प्रारम्भ हा। मुख्य रूप से आगम साहित्य का अनुवाद तीन भाषाओं में उपलब्ध है-अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी। आवश्यकसूत्र का अंग्रेजी अनुवाद नहीं हुआ है, गुजराती और हिन्दी में ही अनुवाद हुआ है। शोध प्रधान युग में प्रावश्यकसूत्र पर पंडित सुखलालजी सिंघवी तथा उपाध्याय अमरमुनिजी प्रभृति विज्ञों ने विषय का विश्लेषण करने के लिये हिन्दी में शोध निबन्ध भी प्रकाशित किये हैं। [ 61] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org