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________________ में मानसिक एकाग्रता सर्वप्रथम आवश्यक है। कायोत्सर्ग अनेक प्रयोजनों से किया जाता है। क्रोध, मान, माया, लोभ का उपशमन कायोत्सर्ग का मुख्य प्रयोजन है / अमंगल, विघ्न और बाधा के परिहार के लिये भी कायोत्सर्ग का विधान प्राप्त होता है। किसी शुभ कार्य के प्रारम्भ में, यात्रा में, यदि किसी प्रकार का उपसर्ग, बाधा या अपशकुन हो जाये तो पाठ श्वास-प्रश्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिये / उस कायोत्सर्ग में नमस्कार महामन्त्र का चिन्तन करना चाहिये / द्वितीय बार पुनः बाधा उपस्थित हो जाये तो सोलह श्वास-प्रश्वास का कायोत्सर्ग कर दो बार नमस्कार महामन्त्र का चिन्तन करना चाहिये। यदि तृतीय बार भी बाधा उपस्थित हो तो 32 श्वास-प्रश्वास का कायोत्सर्ग कर चार बार नमस्कार महामंत्र का चिन्तन करना चाहिये / चतुर्थ बार भी यदि बाधा उपस्थित हो तो विध्न अवश्य ही पाने वाला है, ऐसा समझकर शुभ कार्य या बिहार यात्रा को प्रारम्भ नहीं करना चाहिये / 00 कायोत्सर्ग की प्रक्रिया कष्टप्रद नहीं है। कायोत्सर्ग से शरीर को पूर्ण विश्रान्ति प्राप्त होती है और मन में अपूर्व शान्ति का अनुभव होता है। इसीलिये कायोत्सर्ग लम्बे समय तक किया जा सकता है। कायोत्सर्ग में मन को श्वास में केन्द्रित किया जाता है एतदर्थ उसका कालमान श्वास गितनी से भी किया जाता है। कायोत्सर्ग का प्रधान उद्देश्य है आत्मा का सान्निध्य प्राप्त करना और सहज गुण है मानसिक सन्तुलन बनाये रखना / मानसिक सन्तुलन बनाए रखने से बुद्धि निर्मल होती है और शरीर पूर्ण स्वस्थ होता है। आचार्य भद्रबाह ने कायोत्सर्ग के अनेक फल बताए हैं-१. देहजाड्य-बुद्धि-श्लेष्म आदि के द्वारा देह में जड़ता आती है। कायोत्सर्ग से श्लेष्म प्रादि के दोष नष्ट हो जाते हैं। इसलिये उनसे उत्पन्न होने वाली जड़ता भी समाप्त हो जाती है। 2. मति-जाड्यबुद्धि-कायोत्सर्ग में मन की प्रवृत्ति केन्द्रित हो जाती है, उससे चित्त एकाग्र होता है। बौद्धिक जड़ता समाप्त होकर उसमें तीक्ष्णता आती है। 3. सुख-दुःखतितिक्षा-कायोत्सर्ग से सुख-दुःख को सहन करने की अपूर्व क्षमता प्राप्त होती है / 4. अनुप्रेक्षा–कायोत्सर्ग में अवस्थित व्यक्ति अनुप्रेक्षा या भावना का स्थिरतापूर्वक अभ्यास करता है। 5. ध्यान-कायोत्सर्ग से शुभध्यान का सहज अभ्यास हो जाता है।'' कायोत्सर्ग में शारीरिक चंचलता के विसर्जन के साथ ही शारीरिक ममत्व का भी विसर्जन होता है, जिससे शरीर और मन में तनाव उत्पन्न नहीं होता / शरीरशास्त्रियों का मानना है कि तनाव से अनेक शारीरिक और मानसिक व्याधियाँ समुत्पन्न होती हैं। उदाहरणार्थ शारीरिक प्रवत्ति से--- 99. कायोत्सर्गशतक, गाथा 8 100. सव्वेसु खलियादिसु झाएज्झा पंच मंगलं / दो सिलोगे व चितेज्जा एगग्गो वावि तक्खणं // बिइयं पुण खलियादिसु, उस्सासा होति तह य सोलस य / तइयम्मि उ बत्तीसा, चउत्थम्मि न गच्छए अण्णं / / -व्यवहारभाष्य पीठिका, गाथा 115, 119 101. (क) देहमइजड्डसुद्धी, सुहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा / झाइय य सुहं झाणं, एगग्गो काउसग्गम्मि / —कायोत्सर्गशतक, गाथा 13 (ख) मणसो एगग्गत्तं जणयइ, देहस्स हणइ जड्डत्तं / काउस्सग्मगुणा खलु, सुहदुहमज्झत्थया चेव // -व्यवहारभाष्य पीठिका, गा. 125 (ग) प्रयत्नविशेषत: परमलाघवसंभवात् / -वही, वृत्ति [ 45 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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