________________ [आवश्यक सूत्र इस प्रकार इन 29 प्रकार के पापश्रुतों की श्रद्धा, प्ररूपणा आदि करने से जो अतिचार किया हो तो उससे निवृत्त होता हूँ। महामोहनीय कर्मबन्ध के 30 स्थान 1. स जीवों को पानी में डुबाकर मारना। 2. अस जीवों को श्वास आदि रोककर मारना। 3. त्रस जीवों को मकान आदि में बंद करके धुएँ में घोटकर मारना / 4. त्रस जीवों को मस्तक पर दण्ड आदि का घातक प्रहार करके मारना। 5. अस जीवों को मस्तक पर गीला चमड़ा आदि लपेट कर मारना। 6. पथिकों को धोखा देकर मारना अथवा लूटना / 7. गुप्त रीति से अनाचार का सेवन करना। 8. दूसरे पर मिथ्या कलंक लगाना। 9. सभा में जानबूझकर मिश्र भाषा बोलना / 10. राजा के राज्य का ध्वंस करना। 11. बालब्रह्मचारी न होते हुए भी अपने को बालब्रह्मचारी कहलाना। 12. ब्रह्मचारी न होते हुए भी ब्रह्मचारी होने का ढोंग रचना। 13. आश्रयदाता का धन चुराना। 14. कृत उपकार को न मानकर कृतघ्नता करना / 15. गृहपति अथवा संघपति आदि की हत्या करना। 16. राजा, नगरसेठ तथा राष्ट्रनेता आदि की हत्या करना / 17. समाज के अाधारभूत विशिष्ट परोपकारी पुरुष की हत्या करना। 18. दीक्षित साधु को संयम से भ्रष्ट करना। 16. केवलज्ञानी की निन्दा करना। 20. मोक्षमार्ग का अपकार अथवा अवर्णवाद करना। 21. प्राचार्य तथा उपाध्याय की निन्दा करना। 22. प्राचार्य तथा उपाध्याय की सेवा न करना / 23. बहुश्रुत न होते हुए भी अपने आपको बहुश्रुत कहना-कहलाना / 24. तपस्वी न होते हुए भी अपने को तपस्वी कहना। 25. शक्ति होते हुए भी अपने आश्रित वृद्ध, रोगी आदि की सेवा न करना। 26. हिंसा तथा कामोत्पादक विकथाओं का बार-बार प्रयोग करना। 27. जादू-टोना आदि करना। 28. कामभोग में अत्यधिक लिप्त रहना, आसक्त रहना / 29. देवताओं की निंदा करना / 30. देवदर्शन न होते हुए भी प्रतिष्ठा के मोह से देवदर्शन की बात कहना / - दशाश्रुतस्कन्ध विवेचन-संसार के प्राणिमात्र को मोह ने घेर रखा है। चारों ओर मोह का जाल बिछा हुपा है / क्या परिवार, क्या सम्प्रदाय, क्या जाति एवं क्या अन्य इकाई, सर्वत्र मोह का अंधेरा व्याप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org