________________ चतुर्ष अध्ययन : प्रतिक्रमण] 1. शस्त्रपरिज्ञा, 2. लोक-विजय, 3. शीतोष्णीय, 4. सम्यक्त्व, 5. लोकसार, 6. धूताध्ययन, 7. महापरिज्ञा, 8. विमोक्ष, 9. उपधानश्रुत, 10. पिण्डैषणा, 11. शय्या, 12. ईर्याध्ययन, 13. भाषा, 14. वस्त्रैषणा, 15. पाषणा, 16. अवग्रहप्रतिमा, 17. सप्त स्थानादि सप्तैकिकाध्ययन, 18. नैषधिकी सप्तैकिकाध्ययन, 19. उच्चारप्रस्रवणसप्तैकिकाध्ययन, 20. शब्दसप्तैकिकाध्ययन, 21. रूपसप्तैकिकाध्ययन, 22. परक्रियासप्तकिकाध्ययन, 23. अन्योन्यक्रियासप्तैकिकाध्ययन, 24. भावना, 25. विमुक्ति, 26. उद्घात, 27. अनुद्घात, 28. पारोपण / समवायांगसूत्र के अनुसार प्राचारप्रकल्प के अट्ठाईस भेद इस प्रकार हैं--- 1. एक मास का प्रायश्चित्त, 2. एक मास पांच दिन का प्रायश्चित्त, 3. एक मास दस दिन का प्रायश्चित्त / इसी प्रकार पांच दिन बढ़ाते हुए पांच मास तक कहना चाहिये। (इस प्रकार 25 हुए) 26. उपद्घात-अनुपद्धात, 27. आरोपण, 28. कृत्स्नाकृत्स्न / इन अट्ठाईस अध्ययनों की श्रद्धा, प्ररूपणा आदि में कोई अतिचार लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं / पापश्रुत के 26 भेद जो आत्मा को दुर्गति में डालने का कारण हो, उसे 'पाप' कहते हैं और जो गुरुमुख से सुना जाय उसे 'श्रुत' कहते हैं / इस प्रकार पापरूप श्रुत को 'पापश्रुत' कहते हैं / वह मुख्यतः उनतीस प्रकार का है 1. उत्पात—अपने आप होने वाली रुधिर आदि की वृष्टि का शुभाशुभ फल बताने वाला निमित्तशास्त्र / 2. भौम--भूमिकम्प आदि का फल बताने वाला शास्त्र / 3. स्वप्नशास्त्र-स्वप्न का शुभाशुभ फल बतलाने वाला शास्त्र / 4. अन्तरिक्षशास्त्र-आकाश में होने वाले ग्रहयुद्ध आदि का वर्णन करने वाला शास्त्र / 5. अंगशास्त्र-शरीर के विभिन्न अंगों के फडकने का फल कहने वाला शास्त्र / 6. स्वरशास्त्र-जीवों के चन्द्रस्वर, सूर्यस्वर आदि स्वर का फल प्रतिपादन करने वाला शास्त्र / 7. व्यञ्जनशास्त्र-तिल, मषा आदि के फल का वर्णन करने वाला शास्त्र / 8. लक्षणशास्त्र-स्त्री और पुरुषों के लक्षणों (मान, उन्मान, प्रमाण आदि) का शुभाशुभ फल कहने वाला शास्त्र। ये आठों ही सूत्र, वृत्ति और वार्तिक के भेद से चौवीस हो जाते हैं / 25. विकथानुयोग–अर्थ और काम के उपायों को बताने वाले शास्त्र / जैसे वात्स्यायनकृत कामसूत्र आदि। 26. विद्यानुयोग-रोहिणी आदि विद्यानों की सिद्धि के उपाय बताने वाले शास्त्र / -मन्त्र आदि के द्वारा कार्यसिद्धि बताने वाला शास्त्र। 28. योगानुयोग-वशीकरण आदि योग बताने वाले शास्त्र / 29. अन्यतीथिकानुयोग–अन्य तीथिकों द्वारा प्रवर्तित एवं अभिमत हिंसा प्रधान आचारशास्त्र आदि। --समवायांगसूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org