SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 54] [आवश्यकसूत्र है / शक्ति हो तो केशलुञ्चन करता है, अन्यथा उस्तरे से शिरोमुण्डन कराता है। इसका काल जघन्य एक अहोरात्र अर्थात् एक दिन-रात और उत्कृष्ट ग्यारह मास होता है। उपासक का प्रचलित अर्थ श्रावक है और प्रतिमा का अर्थ-प्रतिज्ञा-अभिग्रह है। उपासक की प्रतिमा उपासकप्रतिमा कहलाती है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि श्रावक की प्रतिमाओं के काल-मान में कुछ मतभेद हैं / कुछ प्राचार्य इनका काल एक, दो, तीन यावत् ग्यारह मास का मानते हैं। जघन्य एक, दो, तीन दिवस आदि नहीं मानते। बारह भिक्षुप्रतिमा-- बाहर भिक्षुप्रतिमाओं का यथाशक्ति आचरण न करना, उन पर श्रद्धा न करना तथा उनकी अन्यथा प्ररूपणा करना अतिचार है। 1. प्रथम प्रतिमाधारी भिक्ष को एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की लेना कल्पता है। साधु के पात्र में दाता द्वारा दिए जाने वाले अन्न और जल की धारा जब तक अखण्ड बनी रहे तब तक वह एक दत्ति है। धारा खण्डित होने पर दत्ति की समाप्ति हो जाती है। जहाँ एक व्यक्ति के लिए भोजन बना हो वहीं से लेना चाहिये, किन्तु जहाँ दो, तीन आदि से अधिक व्यक्तियों के लिये भोजन बना हो वहाँ से नहीं लेना चाहिये / यह पहली प्रतिमा एक मास की है। 2. से 7. दूसरी से सातवी प्रतिमा तक का समय एक-एक मास का है। इनमें क्रमशः एकएक दत्ति बढ़ती जाती है। दो दत्ति दूसरी प्रतिमा में आहार की, दो दत्ति पानी की लेना। इसी प्रकार तीसरी, चौथी यावत् सातवी प्रतिमा में क्रमश: तीन, चार, पांच, छह और सात दत्ति अन्न की और उतनी ही पानी की ग्रहण की जाती हैं। 8. आठवी प्रतिमा सप्त अहोरात्र की होती है। इसमें चौविहार एकान्तर उपवास करना होता है / गाँव के बाहर उत्तानासन (चित्त सोना), पाश्र्वासन (एक करवट लेना) तथा निषद्यासन को बराबर करके बैठना) से ध्यान लगाना चाहिये / उपसर्ग आये तो शान्त चित्त से सहन करना चाहिये। 6. यह प्रतिमा भी सात अहोरात्र की है। इसमें चौविहार षष्ठभक्त तप (बेले-बेले पारणा) किया जाता है। गाँव के बाहर एकान्त स्थान में दण्डासन, लगंडासन अथवा उत्कटुकासन से ध्यान किया जाता है। 10. यह भी सप्त अहोरात्र की होती है। इसमें चौविहार तेले-तेले पारणा किया जाता है। गाँव के बाहर गोदोहासन, वीरासन अथवा पाम्रकुब्जासन से ध्यान किया जाता है। 11. यह प्रतिमा एक अहोरात्र की होती है। एक दिन और एक रात तक इसकी साधना की जाती है। चौविहार बेले के द्वारा इसकी आराधना होती है। गाँव के बाहर कायोत्सर्ग किया जाता है। 12. यह प्रतिमा केवल एक रात्रि की है। इसका आराधन बेले को चढ़ाकर चौविहार तेला करके किया जाता है। गाँव के बाहर खड़े होकर, मस्तक को थोड़ा-सा झुकाकर किसी एक पुद्गल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003496
Book TitleAgam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy