________________ [51 चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण] - भगवान् ने समाधान दिया-"माणविजएणं मद्दवं जणयइ, माणवेयणिज्ज नवं कम्मं न बंधई पुश्व-बद्धं च निज्जरेइ / " - उत्तरा. सू. अ. 26 / __ अर्थात्-मान पर विजय पाने से मृदुता प्राप्त होती है। नवीन कर्मों का बन्ध नहीं होता तथा पूर्वाजित कर्मों की निर्जरा होती है। ___ अहंकार से मनुष्य का दिमाग प्रासमान पर चढ़ जाता है और ऐसी स्थिति में नीचे ठोकर लगने पर शिर फटने की आशंका रहती है। जगत् में मान, गर्व, अभिमान को कुत्ते के समान माना गया है। जैसे कुत्ता प्रेम करने पर मुह चाट कर अशुद्ध कर देता है और मारने पर काट खाता है, उसी तरह अहंकार का पोषण करने से अपयश का भागी बनना पड़ता है और जब अहंकार खंडित हो जाता है तो जीवन-लीला समाप्त होने की भी नौबत आ जाती है। इसलिए कहा है "मृत्योस्तु क्षणिका पीडा मान-खंडो पदे-पदे।" अर्थात्-मृत्यु की पीडा तो क्षणिक होती है, किन्तु मान-भंग होने की पीडा पद-पद पर कष्ट पहुंचाती है। नौ ब्रह्मचर्य-गुप्तियाँ ब्रह्मचर्य शरीर की शक्ति है। जीवन का परमोत्तम धन है। मन का मर्दन है। आत्मा का उत्थान है। व्रतों में उत्तम है। साधना की बुनियाद और धर्माराधना का आधार है। सफलता का साधन और शांति का स्रोत है। क्षमा का सागर और विनय का आगार है। सूत्रकृतांग सूत्र के छ? अध्ययन में लिखा है—'तवेसु वा उत्तम बंभचेरं' अर्थात् ब्रह्मचर्य तपों में श्रेष्ठ है। ब्रह्मचर्य का अर्थ-- जीवो बंभो जीवम्मि चेव चरिया, हविज्ज जा जविणो ? तं जाणं बंभचेरं, विमुक्क परदेहतित्तिस्स / / -भगवती आराधना 81 अर्थात्-ब्रह्म अर्थात् आत्मा, आत्मा में चर्या मुनि की अर्थात् रमण करना ब्रह्मचर्य है / ब्रह्मचर्य धर्मसाधना का आधार है। इसकी साधना से प्रात्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है--'ब्रह्मचर्य धर्मरूपी पद्मसरोवर की पाल है। वह दया क्षमादि गुणों का आगार है एवं धर्म-शाखाओं का आधार है। ब्रह्मचारी की देव-नरेन्द्र पूजा करते हैं। यह संसार का मंगलमय मार्ग है। देव-दाणव-गंधव्या जक्ख-रक्खस-किन्नरा। बंभयारि नमसंति दुक्करं जे करंति ते // -उत्तराध्ययन सूत्र अर्थात्-देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस तथा किन्नर आदि देवगण भी दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले ब्रह्मचारी को नमस्कार करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org