________________ 50] [आवश्यकसूत्र असंभव है। जीवन-शुद्धि के पथ में अधर्म लेश्याओं का आचरण किया हो और और धर्म लेश्याओं का आचरण न किया हो तो प्रस्तुत-सूत्र के द्वारा उसका प्रतिक्रमण किया जाता है / भयादि-सूत्र भय से लेकर आशातना तक के बोल कुछ उपादेय हैं, कुछ ज्ञेय हैं, कुछ हेय हैं / भयस्थान के सात प्रकार हैं 1. इहलोकभय-अपनी जाति के प्राणी से डरना इहलोकभय है / जैसे—मनुष्य का मनुष्य से, तिर्यञ्च का तिर्यञ्च से डरना / 2. परलोकभय-दूसरी जाति वाले प्राणी से डरना परलोकभय है। जैसे—मनुष्य का देव से या तिर्यञ्च आदि से डरना / 3. आदानभय-चोर आदि द्वारा धन आदि छीने जाने का भय / 4. अकस्मात्भय–बिना कारण ही अचानक डर जाना। 5. आजीविकाभय–दुभिक्ष आदि में जीवन-यात्रा के लिये भोजन आदि की अप्राप्ति के दुविकल्प से डरना। 6. मरणभय-मृत्यु से डरना। 7. अपयश-अश्लोकभय-अपयश की आशंका से डरना। भयमोहनीय कर्म के उदय से होने वाले आत्मा के उद्वेग रूप परिणाम-विशेष को भय कहते हैं। साधु को किसी भय के आगे अपने आपको नहीं झुकाना चाहिये। निर्भय रहना अर्थात् न स्वयं भयभीत होना और न दूसरों को भयभीत करना चाहिये। भय के द्वारा संयम-जीवन दूषित होता है, तदर्थ भय का प्रतिक्रमण किया जाता है। आठ मदस्थान 1. जातिमद-ऊंची एवं श्रेष्ठ जाति (मातृपक्ष) का अभिमान / 2. कुलमद-ऊंचे कुल (पितृपक्ष) का अभिमान / 3. बलमद-अपने बल का घमण्ड करना। 4. रूपमद अपने रूप का, सौन्दर्य का अभिमान करना। 5. तपोमद-उग्र तपस्वी होने का गर्व करना / 6. श्रुतमद-शास्त्राभ्यास का अर्थात् पंडित होने का घमण्ड करना / 7. लाभप्रद अभीष्ट वस्तु के मिल जाने पर लाभ का गर्व करना / 8. ऐश्वर्यमद अपने प्रभुत्व का अहंकार / विवेचन-ये आठ मद समवायांग सूत्र के उल्लेखानुसार हैं / गणधर गौतम ने श्रीमहावीर स्वामी से प्रश्न किया था--- माण-विजएण भंते ! जीवे कि जणयइ ? हे भगवन् ! मान पर विजय पाने से जीव को किस लाभ की प्राप्ति होती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org