________________ 28] [बशा तस्कन्ध 3. प०-से कि तं विक्खेवणा-विणए ? उ०-विक्खेवणा-विणए चउम्बिहे पण्णत्ते, तं जहा 1. अदिधम्म दिट्ठ-पुथ्वगत्ताए विणयइत्ता भवइ, 2. दिट्ठपुव्वगं साहम्मियत्ताए विणयइत्ता भवइ, 3. चुयधम्माओ धम्मे ठावइत्ता भवइ, 4. तस्सेव धम्मस्स हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेयसाए, अणुगामियत्ताए अम्भुठेत्ता भवइ। से तं विक्खेवणा-विणए। 4. ५०-से कि तं दोसनिग्घायणा-विणए ? उ०-दोसनिग्धायणा-विणए चउव्यिहे पण्णते, तं जहा 1. कुद्धस्स कोहं विणएत्ता भवइ, 2. दुस्स दोसं णिगिण्हित्ता भवइ, 3. कंखियस्स कंखं छिदित्ता भवइ, 4. आया-सुपणिहिए यायि भवइ / से तं दोसनिग्धायणा-विणए / प्राचार्य अपने शिष्यों को यह चार प्रकार को विनय-प्रतिपत्ति सिखाकर के अपने ऋण से उऋण हो जाता है। जैसे 1. प्राचार-विनय, 2. श्रुत-विनय, 3. विक्षेपणा-विनय, 4. दोषनिर्घातना-विनय / 1. प्र०-भगवन् ! वह आचार-विनय क्या है ? उ०-आचार-विनय चार प्रकार का कहा गया है, जैसे 1. संयम की समाचारी सिखाना। 2. तप की समाचारी सिखाना। 3. गण की समाचारी सिखाना। 4. एकाकी विहार की समाचारी सिखाना। यह आचार-विनय है। 2. प्र० --भगवन् ! श्रुत-विनय क्या है ? उ०–श्रुत-विनय चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. मूल सूत्रों को पढ़ाना। 2. सूत्रों के अर्थ को पढ़ाना / 3. शिष्य के हित का उपदेश देना। 4. सूत्रार्थ का यथाविधि समग्र अध्यापन कराना / यह श्रुत-विनय है। 3. प्र०-भगवन् ! विक्षेपणा-विनय क्या है ? उ० -विक्षेपणा-विनय चार प्रकार का कहा गया है, जैसे 1. जिसने संयमधर्म को पूर्ण रूप से नहीं समझा है उसे समझाना / 2. संयमधर्म के ज्ञाता को ज्ञानादि गुणों से अपने समान बनाना / 3. धर्म से च्युत होने वाले शिष्य को पुनः धर्म में स्थिर करना / 4. संयमधर्म में स्थित शिष्य के हित के लिये, सुख के लिए, सामर्थ्य के लिए, मोक्ष के लिए और भवान्तर में भी धर्म की प्राप्ति हो, इसके लिए प्रवृत्त रहना। यह विक्षेपणा-विनय है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org