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## The 8th Uddeshak [445]
No action yields good results, only bad ones. Therefore, it is essential to be mindful.
**Fourfold Classification of Individuals (based on their adherence to Dharma)**
**1. Based on Form (Rupa) and Dharma:**
* **Type 1:** One who abandons form (external appearance) but not Dharma.
* **Type 2:** One who abandons Dharma but not form.
* **Type 3:** One who abandons both form and Dharma.
* **Type 4:** One who abandons neither form nor Dharma.
**2. Based on Dharma and Community (Ganasanthis)**
* **Type 1:** One who abandons Dharma but not the community's principles.
* **Type 2:** One who abandons the community's principles but not Dharma.
* **Type 3:** One who abandons both Dharma and the community's principles.
* **Type 4:** One who abandons neither Dharma nor the community's principles.
**3. Based on Love for Dharma (Piyadhamma) and Firmness in Dharma (Dhadhamma)**
* **Type 1:** One who is attached to Dharma but not firm in it.
* **Type 2:** One who is firm in Dharma but not attached to it.
* **Type 3:** One who is both attached to and firm in Dharma.
* **Type 4:** One who is neither attached to nor firm in Dharma.
**Discussion:**
These fourfold classifications describe the different levels of a seeker's adherence to Dharma. They discuss:
1. External appearance (Rupa) and Dharma.
2. Dharma and the community's principles (Ganasanthis).
3. Love for Dharma (Piyadhamma) and firmness in Dharma (Dhadhamma).
The first classification highlights that some individuals, regardless of the situation, never abandon their Dharma and external appearance. They navigate challenging circumstances with unwavering commitment. This represents the highest state of a seeker's soul.
Others, overwhelmed by fear, abandon their external appearance and adherence to principles, but maintain their Dharma and faith. Such seekers may miss out on spiritual progress but are not destined for a bad fate.
________________ बसवां उद्देशक [445 किसी भी पुरुषार्थ का अच्छा परिणाम नहीं है, अपितु दुष्परिणाम है। इसलिए इसका विवेक रखना आवश्यक है। धर्मदृढता की चौभंगियां 9. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–१. रूवं नाममेगे जहइ, नो धम्म, 2. धम्म नाममेगे जहइ, नो रूवं, 3. एगे रूवं वि जहइ, धम्म वि जहइ, 4. एगे नो रूवं जहइ, नो धम्मं जहइ / 10. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—१. धम्मं नाममेगे जहइ, नो गणसंठिइं, 2. गणसंठिइं नाममेगे जहइ, नो धम्मं, 3. एगे गणसंठिई वि जहइ, धम्म वि जहइ, 4. एगे नो गणसंठिइं जहइ, नो धम्मं जहइ। 11. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-१. पियधम्मे नाममेगे, नो ढधम्मे, 2. दढधम्मे नाममेगे, नो पियधम्मे, 3. एगे पियधम्मे वि, दढधम्मे वि, 4. एगे नो पियधम्मे, नो दढधम्मे / 9. चार जाति के पुरुष कहे गये हैं, जैसे-१. कोई रूप (साधुवेष) को छोड़ देता है, पर धर्म को नहीं छोड़ता है / 2. कोई धर्म को छोड़ देता है पर रूप को नहीं छोड़ता है। 3. कोई रूप भी छोड़ देता है और धर्म भी छोड़ देता है / 4. कोई न रूप को छोड़ता है और न धर्म को छोड़ता है। 10. पुन: चार जाति के पुरुष कहे गये हैं / जैसे-१. कोई धर्म को छोड़ता है, पर गण की संस्थिति अर्थात् गणमर्यादा नहीं छोड़ता है / 2. कोई गण की मर्यादा भी छोड़ देता है, पर धर्म को नही छोड़ता है। 3. कोई गण की मर्यादा भी छोड़ देता है और धर्म भी छोड़ देता है। 4. कोई न गण की मर्यादा ही छोड़ता है और न धर्म ही छोड़ता है। 11. पुनः चार जाति के पुरुष कहे गये हैं, जैसे 1. कोई प्रियधर्मा है पर दृढधर्मा नहीं है / 2. कोई दृढधर्मा है, पर प्रियधर्मा नहीं है। 3. कोई प्रियधर्मा भी है और दृढधर्मा भी है। 4. कोई न प्रियधर्मा ही है और न दृढधर्मा ही है। विवेचन--इन चौभंगियों में साधक की धर्मदृढता आदि का कथन किया गया है / जिसमें निम्न विषयों की चर्चा है---- 1. साधुवेश और धर्मभाव, 2. धर्मभाव और गणसमाचारी की परम्परा, 3. धर्मप्रेम और धर्मदृढता / प्रथम चौभंगी में यह बताया गया है कि कई व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में अपने धर्मभाव और साधुवेश दोनों को नहीं छोड़ते और गम्भीरता के साथ विकट परिस्थिति को पार कर लेते हैं। यह साधक आत्माओं की श्रेष्ठ अवस्था है। शेष भंगवर्ती कोई साधक घबराकर बाह्यवेषभूषा का और संयम-प्राचार का परित्याग कर देता है, किन्तु धर्मभावना या सम्यश्रद्धा को कायम रखता है। ऐसा साधक आत्मोन्नति से वंचित रहता है, किन्तु दुर्गति का भागी नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org