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[The Tenth Uddeshak] .[To decide from 443 is the cause of contradiction. Therefore, understanding the meaning of this sutra, one should decide the previous elements impartially / This sutra is also in Bhagavati Sutra Sh. 8 U. 8 and Thanang A. 5 U. 2 / Some discussion has also been done there on this subject / The summary is that the atonement or other elements should be decided sequentially by these five practices, not in reverse. Therefore, in any subject, it should be considered completely inappropriate to insist on belief or tradition while having a previous text. 4. Four types of virtuous men have been said / For example-1. Some virtuous person does work, but does not believe / 2. Some believe, but do not work. 3. Some do work and also believe / 4. Some do not work and do not believe. 5. (Again) Four types of virtuous men have been said / For example-1. Some do the work of the Gan, but do not believe / 2. Some believe, but do not do the work of the Gan / 3. Some do the work of the Gan and also believe. 4. Some do not do the work of the Gan and do not believe. 6. (Again) Four types of virtuous men have been said. For example-1. Some collect for the Gan, but do not believe / 2. Some believe, but do not collect for the Gan. 3. Some collect for the Gan and also believe / 4. Some do not collect for the Gan and do not believe either.
________________ दसवां उद्देशक] .[443 से निर्णय करना विराधना का हेतु है। अतः इस सूत्र के प्राशय को समझ कर निष्पक्षभाव से प्रागम तत्त्वों का निर्णय करना चाहिए / भगवतीसूत्र श. 8 उ. 8 में तथा ठाणांग अ. 5 उ. 2 में भी यह सूत्र है / वहां भी इस विषयक कुछ विवेचन किया गया है / सारांश यह है कि प्रायश्चित्तों का या अन्य तत्वों का निर्णय इन पांच व्यवहारों द्वारा क्रमपूर्वक करना चाहिए, व्युत्क्रम से नहीं। इसलिए किसी विषय में प्रागमपाठ के होते हुए धारणा या परंपरा को प्रमुखता देकर अाग्रह करना सर्वथा अनुचित समझना चाहिए। विविधप्रकार से गण की वैयावृत्य करने वाले 4. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-१. अट्टकरे नाम एगे, नो माणकरे, 2. माणकरे नामं एगे, नो अटुकरे, 3. एगे अटुकरे वि, माणकरे वि, 4. एगे नो अट्ठकरे, नो माणकरे। 5. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–१. गणटकरे नाम एगे, नो माणकरे, 2. माणकरे नामं एगे, नो गणटुकरे, 3. एगे गणटुकरे वि, माणकरे वि, 4. एगे नो गणट्टकरे, नो माणकरे। 6. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-१. गणसंगहकरे नाम एगे, नो माणकरे, 2. माणकरे नाम एगे, नो गणसंगहकरे, 3. एगे गणसंगहकरे वि, माणकरे वि, 4. एगे नो गणसंगहकरे, नो मागकरे। 7. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-१. गणसोहकरे नाम एगे, नो माणकरे, 2. माणकरे नाम एगे, नो गणसोहकरे, 3. एगे गणसोहकरे वि, माणकरे वि, 4. एगे नो गणसोहकरे, नो माणकरे / 8. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-१. गणसोहिकरे नामं एगे, नो माणकरे, 2. माणकरे नाम एगे, नो गणसोहिकरे, 3. एगे गणसोहिकरे वि, माणकरे वि, 4. एगे नो गणसोहिकरे, नो माणकरे। 4. चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गए हैं / जैसे-१. कोई साधु कार्य करता है, किन्तु मान नहीं करता है / 2. कोई मान करता है, किन्तु कार्य नहीं करता है। 3. कोई कार्य भी करता है और मान भी करता है / 4. कोई कार्य भी नहीं करता है और मान भी नहीं करता है। 5. (पुनः) चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गये हैं / जैसे—१. कोई गण का काम करता है, परन्तु मान नहीं करता है / 2. कोई मान करता है, परन्तु गण का काम नहीं करता है / 3. कोई गण का काम भी करता है और मान भी करता है। 4. कोई न गण का काम करता है और न मान करता है। 6. (पुनः) चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गये हैं। जैसे-१. कोई गण के लिए संग्रह करता है, परन्तु मान नहीं करता है / 2. कोई मान करता है, परन्तु गण के लिए संग्रह नहीं करता है। 3. कोई गण के लिए संग्रह भी करता है और मान भी करता है / 4. कोई न गण के लिए संग्रह करता है और न मान ही करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org